शनिवार, 30 जून 2012

शीर्षक :- देखा है हमने

शीर्षक :- देखा है हमने 

आसमान में सूरज को उगते....
समुन्दर के किनारे,
लोगों को नहाते....
लहरों को ऊपर उठते,
                   देखा है हमने....
 जहाजों को तैरते....
पक्षियों को उड़ते,
फूलों को खिलते....
कोयल को गाते,
                 देखा है हमने....



सहसा दिन को रात में बदलते....
बादलों को गरजते,
बिजली को कड़कड़ाते....
किसानो को हँसते,
               देखा है हमने....
सुख को आते....
दुःख को जाते,
किसी को खिसियाते....
बच्चों को चिढ़ाते,
              देखा है हमने....
खेतों को लहलहाते....
खेतो में बीजों को बोते,
आम के पेड़ में बौरों को आते....
कच्चे आम को पकते,
               देखा है हमने....


 बारिश में छाता लेकर जाते....
फिसलन से किसी को गिरते,
उसके गिरने से किसी को हँसते....
माँ को बच्चे को बहलाते,
                             देखा है हमने....


पतझड़ के मौसम में....
पेड़ों से पत्ते गिरते,
पक्षियों को चहचहाते....
मच्छरों को काटते,
             देखा है हमने....
बस में लटक कर सफ़र करते....
कंडक्टर से झगड़ते,
किसी को पीकर झगड़ते....
लड़कों को बिगड़ते, 
                देखा है हमने....


कवि : आशीष कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर 

शुक्रवार, 29 जून 2012

शीर्षक :- मछली

शीर्षक :- मछली 
मछली का जीवन पानी के तरंगो से....
हलचल होती उसके अंगो से,
लहरों के हलचल  से.... 
मछली ऊपर नीचे होती लहरों के तरंगो से, 
मछली का जीवन उसकी उमंगो से....
मछली होती कोमल अपने अंगो से,
मछली जल की रानी है....
जीवन उसका पानी है,

कवि : हंसराज कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

गुरुवार, 28 जून 2012

शीर्षक :- मन

शीर्षक :- मन 
मन क्यों करता है जाने क्या करता है....
मन की बात हमको मानना ही पड़ता है,
ऐसा  मेरे साथ ही क्यों होता है....
हर समय हर पल मन की बात सुनना पड़ता है,
ऐसा  मेरे साथ ही क्यों होता है....
मन क्यों बड़े लोगो की बात मानने से कतराता है,
ऐसा  मेरे साथ ही क्यों होता है....
मन क्यों कठिनाइयों को झेलने से डरता है,
ऐसा  मेरे साथ ही क्यों होता है....
पहाड़ जैसे मुशिकलों को गले लगाने से क्यों डरता है,
आगे बदने पर पहाड़ जैसे मुशिकलों से क्यों डरता है....
कवि  : जमुना कुमार 
कक्षा : 7
अपना घर

बुधवार, 27 जून 2012

शीर्षक :- पेड़

 शीर्षक :- पेड़ 
पेड़ हम अब लगायेगें....  
गर्मी को दूर भगायेगें, 
मानसून हम लायेगें....
पानी ये पेड़ लायेगें,
गर्मी से बेहाल इस मौसम....
को अब सुहावना बनायेगें,
बहुत ही तेजी से ये प्रथ्वी हो रही है गरम....
सूरज भी क्यों हो गया इतना बेरहम,

सूरज की इस बेरहमी का....
कारण है ये मनुष्य,
जिसने लिखा अपने हाथ से....
गर्मी के दिनों से भरा भविष्य,
इस समय ये मनुष्य....
ईधन का कर रहे उपयोग,
पंखा और कूलर वाले....
घर मन में बैठे कर रहे योग,
इतनी तेज की इस गर्मी से....
गरीबों को अब छुटकारा दिलाओ,
पसीने और लू से भरे जीवन में....
बसंत ऋतु का आगमन कराओ,
गर्मी बादलों के द्वारा अब....
ये भी कहा जा रहा है,
क्यों इस हरी भरी धरती को....
मानव तू सुखा रहा है, 


गरीबो में भी अब तुम....
अच्छा जीवन पाओगे,
पेड़ तो हम लगायेगें । क्या ?....
तुम भी पेड़ लगाओगे,







कवि : सोनू कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर  

मंगलवार, 26 जून 2012

शीर्षक :- संपादकीय

शीर्षक :- संपादकीय
दोस्तों,
        मैं पहली बार सम्पादकीय लिखने जा रहा हूँ, हो तो जो गलती हो। उससे मुझे सचेत करें जिससे मैं उस गलती में सुधार कर सकूँ। मई और जून की छुट्टियाँ तो अब बीतने को हैं। जून की गर्मियों की छुट्टी तो इस साल सभी को बहुत खली होगी, क्योंकि इस गर्मी ने तो छुट्टी का पूरा मजा ही बिगाड़ दिया। वो समय जब हम इसी छुट्टी के समय बरसात की फुहारों का आनन्द लेते थे। वहीँ इस साल हम सुबह से शाम तक घर से निकलने के इस लू के थमने का इन्तजार करते रहें हैं। हाँ तो हमारी छुट्टियाँ कब बीत गई हमें महसूस भी नहीं हुआ घूमने ही घुमने में हमारी सारी की सारी छुट्टियाँ ही बीत गई। अब जब स्कूल खुलने को है, तो हम सभी अपने अपने रिश्तेदारों के घर से अपने घर को आ रहे है। और हम आशा करते हैं कि सभी की छुट्टियाँ बहुत ही अच्छे से बीती होंगी और आपने इस दौरान खूब मस्ती भी की होगी और हमारा "बाल सजग" अच्छे से चल रहा है, और आगे बढ़ते जा रहा है। जिस तरह से एक पौधे का बीज अंकुरित होकर विकसित होता  है...इसमें सबसे ज्यादा ख़ुशी की बात ये है। कि आज कल छुट्टी है तो सभी लोग बहुत अच्छा-अच्छा लिखने की कोशिश कर रहें है। और आज-कल सभी लोगों की कविता जरुर किसी न किसी मुद्दे पर आधारित रहती है। इस समय सभी सदस्य बाल सजग को चलाने में अपना-अपना सम्पूर्ण योगदान दे रहे है। जिससे "बाल सजग" में एक से एक अच्छी कविता लिखी जा रहीं है। अब सभी लोगों के स्कूल खुल चुके है, तो सभी से मैं ये ही कहना चाहूगां। कि सभी लोग पुरे मन से पढाई करें और इसके अलावा कुछ अलग भी करने का सपना सजोयें.........................।
उपसंपादक : सोनू कुमार 
कक्षा : 11 
अपना घर

सोमवार, 25 जून 2012

शीर्षक :- बचपन

शीर्षक :- बचपन 
बच्चे होते है, मन के सच्चे....
सबको लगते हैं, अच्छे,
लगते हैं, तब तक अच्छे....
रहते हैं, जब तक बच्चे,
जब हो जाते हैं, वो बड़े....
तब बचपन खो जाता है,
घर गृहस्ती में लोग लग जाते हैं....
उसी जीवन में व्यस्त हो जाते है,
फिर कभी उससे निकल नहीं पाते हैं....
इसी में जीवन ख़त्म हो जाता है,
ये बच्चे होते हैं मन के सच्चे....


कवि : हंसराज कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर 

रविवार, 24 जून 2012

शीर्षक :- ट्रैफिक जाम

शीर्षक :- ट्रैफिक जाम 
ट्रैफिक -ट्रैफिक -ट्रैफिक....
मेरे शहर का कैसा है, ट्रैफिक,
शहर में लगा रहता है, जाम....
नहीं हो पाते महत्वपूर्ण काम,
जहाँ देखो वहीँ हैं, गाड़ियाँ....
आदि तिरछी लगी हैं, गाड़ियाँ,
सिग्नल देख नहीं है, कोई चलता....
गाड़ी आने पर नहीं कोई रुकता,
गाड़ी जोर से भगा ले जाते....
इसलिए कोई ट्राफिक का पालन नहीं कर पाते,
ट्रैफिक का पालन सभी लोग करने लगेंगे....
गाड़ियों का जाम बंद हो जायेगा,
ट्रैफिक -ट्रैफिक -ट्रैफिक....
मेरे शहर का कैसा है ट्रैफिक,

कवि : मुकेश कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर 

शनिवार, 23 जून 2012

शीर्षक :- अँधेरे में चन्द्रमा

शीर्षक :- अँधेरे में चन्द्रमा 
रात के अँधेरे में....
चन्द्रमा के घेरे में,
 


सूरज की बांतो में....
तारों की रातों में,
जग-मगा रहे थे तारे....

चंद्रमा व सूरज लग रहे थे प्यारे,
मन करता है उनको छुलूं....
मन करता है उनसे बोलूं,
उनको अपने पास बुलाकर....
अलग-अलग सवाल मैं पूछूं,
रात के अँधेरे में चंद्रमा के घेरे में....





कवि : मुकेश कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर  

शुक्रवार, 22 जून 2012

शीर्षक :- ककडियाँ

शीर्षक :- ककडियाँ
गर्मी के मौसम में....
ताजी ताजी हरी ककडियाँ, 
ये मन को ठंडा कर देती है....
सभी को पसंद ये आती है,
हरी भरी ककडियाँ हैं....
नदिया का किनारा घर है इनका,
आती हैं बोरों में भरकर....
हैं कितनी हरी भरी ककडियाँ,
गर्मी के मौसम में आती हैं....
छोटी हों या बड़ी हों,
सभी के मन को भाती हैं.... 
हवा की लपटों से लड़ी ककडियाँ,
गर्मी के मौसम में....
ताजी ताजी हरी ककडियाँ,

कवि : जितेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर

गुरुवार, 21 जून 2012

शीर्षक :- गीत ख़ुशी के

शीर्षक :- गीत ख़ुशी के 
वो ज़मी वो आशियाना....
हमें भी मिलना चाहिए,
अब इस कीचड़ और टीन छत....
से अब हमें निकलना चाहिए,
आखिर कब तक हम....
देख-देख यूँ तरसते रहेंगे,
आखिर कब तक हम केवल....
उसे ख्वाबों में अपना कहेंगे, 
आखिर कब तक हम....
काम करके आँसू बहाते रहेंगे,
और कब तक हम अपने गांवों में....
शोकगीत गाते रहेंगे,
कब तक हम दूसरों के....
कर्जे तले दबे रहेंगे,
इस अँधेरे में अब हम....
सपने अपने बुनेंगे,
अब हम भी पढेंगे....
पढ़-पढ़ कर आगे बढ़ेंगे,
यूँ तो रो-रो कर....
आसूं हैं हमने बहुत बहाए,
मन तो कह रहा अब कुछ....
पल ख़ुशी के गीत हो जाएँ,
कवि : सोनू कुमार 
कक्षा : 11 
अपना घर  

बुधवार, 20 जून 2012

शीर्षक :- गर्मी

शीर्षक :- गर्मी 
कड़ाके की इस गर्मी में....
हो रहा सब हाल बेहाल,
पर्यावरण के प्रति मनुष्य के इस व्यव्हार से....
हो रहा है सूरज पीला,लाल ,
मनुष्य अपने लाभ के लिए....
इन बेजुबान पेड़ों को काट रहें है,
काट काट इन पेड़ों को....
मौत सभी को बाँट रहे है,
प्यारी सी इस अपनी धरती को....
क्यों कर रहे हरियाली से दूर,
खूब सारे पेड़ पौधों को लगाकर....
आनन्द हम लें इसका भरपूर,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर

मंगलवार, 19 जून 2012

शीर्षक :- मन में कोई बात नहीं

शीर्षक :- मन में कोई बात नहीं 
फकीर कहें या गरीब कहें....  
या पेट का मरीज कहें,
रोजा का कोई दोष नहीं....
मन में कोई चाहत नहीं,
मन में ऐसी कोई बात नहीं....
करने की कुछ आजादी नहीं,
जाने को कहीं बीमारी नहीं....
पढ़ने में कोई आहट नहीं,
मन में कोई चाहत नहीं....
मन में ऐसी कोई बात नहीं,
बनने की जो चाहत....
घर में इसका कोई जवाब नहीं,
कहें क्या खुद से....
मन न लगे बुक में,
मन में कोई चाहत नहीं....
बुक पास में, लेकिन पढ़ने की कोई चाहत नहीं,
कवि : अशोक कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर 

शीर्षक :- नशेड़ी

शीर्षक :- नशेड़ी 
ऊपर वाले से दुआ की थी....
मेरे बगल वाले ने शराब पी थी,
वह नशे में था....
उसको होश नहीं कि वह कहाँ था,
सीधा जाते हुए खम्बे से टकरा कर बोला....
सॉरी माफ़ करना मेरा नाम  है भोला,
पास खड़े एक व्यक्ति नें यह जब देखा....
सोंचा इस नशेड़ी को दे दूँ धोखा,
वह लग गया उसके पीछे.... 
तान के अपनी मूछें,
वह उसके पास जाकर बोला....
मुझे पहचाना हम दोनों गए थे देखने मेला,
नशेड़ी लिपट गया उसके गले....
उसने कहा बहुत दिनों के बाद मिला है पगले,
इतने में नशेड़ी नें कर दिए पैसे पार....
मौका देख हो गया वहां से फरार,
कवि : आशीष कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर 

सोमवार, 18 जून 2012

शीर्षक :- वारिस

शीर्षक :- वारिस 
न होती रात न होते दिन....
होती सुहावनी सुबह,
होती सुहावनी शाम....
न होती गर्मियों की गर्मी,
न होती जड़ों की सर्दी....
होता केवल बादलों का घेरा,
न होता घन-घोर काला अँधेरा....
होती बादलों की रिमझिम बारिस,
तो हम होते प्रथ्वी के वारिस....
कवि : हंसराज कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर  


शनिवार, 16 जून 2012

शीर्षक :- आज का आदमी

शीर्षक :- आज का आदमी 
इस परिवर्तन शील संसार में हर नेता....
कुत्ता बन कर जीना सीख लिया है,
अपने आप को भूल गया है....
और कुत्तों को देखकर उसी के,
झुण्ड में रहना सीख लिया है....
इस परिवर्तन शील संसार में हर नेता,
कुत्ता बन कर जीना सीख लिया है....
आम जनता ने जिन कुत्तो को रोटी दे-दे,
कर M.P., M.L.A. में भेज दिया है....
आज वही कुत्ता आम जनता पर,
भौकना और हुक्म चलाना सीख लिया है....
जब आम जनता उनके ऊपर रौब जमाता है,
तो उनकी मज़बूरी बन गई है क्योंकि....
उसने अपनी दम हिलाना सीख लिया है,
न किसी के प्रति प्रेम भाव है....
न स्नेह न श्रद्धा है,
और अब हम क्या कहें उसने तो अब....
हर किसी को लूटना सीख लिया है,
इस परिवर्तन शील संसार में हर नेता....
कुत्ता बन कर जीना सीख लिया है,
कवि : सागर कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर

शुक्रवार, 15 जून 2012

शीर्षक :- मिलते साथ

शीर्षक :- मिलते साथ
पेन कॉपी जब मिलते साथ....
तब अक्षर लिखते है हाथ,
अक्षर के कई प्रकार....
इनका नहीं है निश्चित आकार,
हांथो न पूछो हल....
ये रखते है शरीर का ख्याल,
पेन कॉपी जब मिलते साथ....
तब अक्षर लिखते है हाथ,
कवि : ज्ञान कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  

गुरुवार, 14 जून 2012

शीर्षक :- नेता और महगाईं

शीर्षक :- नेता और महगाईं 
महगाईं का दौर है भईया....
नेताओं का है जमाना,
घोटाले पर घोटाला करके....
भर रहें हैं ये खजाना,  
इधर इस महगाईं से....
आम जनता इतनी तंग है,
आलू,बैगन,टमाटर,प्याज से....
छिड़ती आज उनकी जंग है,
पेट्रोल का बढ़ गया इतना दाम....
कहीं न लगता अब जाम,
कैसी है भाई ये नेता की चाल....
जिसने कर रखा सबको बेहाल,
कवि : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  

शीषक :- पाने के लिए

शीषक :- पाने के लिए 
इस जीवन के सफ़र में....
शुरू से अंत तक,
कुछ भी हम करते हैं....
तो कुछ पाने और,
कुछ खोने के लिए....
शायद हम पढाई करते हैं,
तो दोस्तों का प्यार खेल कूद....
और वो हसीं मजाक लड़ना झगड़ना,
सब कुछ खो देते है....
शायद हमारे माँ बाप, 
एक वक्त की रोटी के लिए....
वो मेंहनती काम और दूसरों की,
बातों को सुनने को तैयार रहते है....
अपना सुख चैन सब कुछ खो देते हैं,
शायद हमारी जिंदगी का मतलब ही....
कुछ पाने के लिए कुछ खोना है,
कवि : हंसराज कुमार
कक्षा : 9
अपना घर  

बुधवार, 13 जून 2012

शीर्षक :- गर्मी

शीर्षक :- गर्मी 
सूरज तपता धरती तपती....
गर्म हवा जोरों से चलती,
तन से बहुत पसीना बहता....
हाथ सभी के पंखा होता,
काले बादल काले बादल....
गर्मी दूर भगा रे बादल,
रिमझिम बूंद बरसाना बादल....
झम- झम पानी बरसाना बादल,
गर्मी दूर भागता बादल....
सबको राहत देता बादल,
सूरज तपता धरती तपती....
गर्म हवा जोरों से चलती,
कवि : जीतेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 

मंगलवार, 12 जून 2012

शीर्षक :- वृक्ष

शीर्षक :- वृक्ष 
पलट अब मौसम जब करेगा वार....
ये वृक्ष करेंगे अपना बेडा पर,
वृक्ष हमें देते हैं छाया....
और मीठे मीठे फल,
ख़ुशी ख़ुशी अब किसान....
खेतों में चलाएंगे हल,
वर्षा का अब है भंडार....
खुश होगा अब सूना संसार,
हरियाली आयेगी भरमार....
नहीं होगा गर्मी का वार,
प्रथ्वी पर हम लगायेंगे वृक्ष....
अब हम इसको बनायेंगे स्वच्छ,
कवि : सोनू कुमार 
कक्षा : 11 
अपना घर

शीर्षक :- कुछ पाने के लिए

शीर्षक :- कुछ पाने के लिए 
मैं निकल पड़ा कुछ पाने के लिए....
इस तपती दुपहरिया में,
मैं सिर्फ हाथ डुलाते निकल पड़ा....
मुझे नहीं था पता,
कुछ पाने के लिए है कुछ खोना पड़ता....
यह सुनकर मैं मुश्किलों से,
लड़ता हुआ आगे बढ़ा....
आगे बढ़ने पर मैंने,
सिखा मुशिकलों से लड़ना....
और परिश्रम करना,
मुझे अब शुरू हो गई....
सूर्य की लालिमा दिखना,
मैं उस लालिमा को बस....
देखता ही रहा-देखता ही रहा,
मैं निकल पड़ा कुछ पाने के लिए....
कवि : चन्दन कुमार 
कक्षा : 7 
अपना घर  

रविवार, 10 जून 2012

शीर्षक :- स्वप्न

शीर्षक  :- स्वप्न 
ह्रदय में हैं अनेक स्वप्न....
किन्तु घूम रहे हम लेकर उन्हें,
कब हो जाये ये अधूरे....
उनका नहीं कोई ठिकाना,
चलते है जैसे चार कदम....
बढ़ते स्वप्न हजार कदम,
जब स्वप्न हुए अधूरे....
नहीं देता कोई सहारा,
गिर जाते खाइयों पर....
नहीं कोई उठाने वाला,
देख नजारा जग मुस्कुराये....
जो चलते थे संग वो खुद न आये,
जब तक थी दौलत अपने संग....
लोग भी चलते थे संग,
ऐसे स्वप्नों को देखने से....
ह्रदय हुआ उदास,
न हुयी मन अभिलाषा....
पूरी हो गई प्यास,
ऐसे स्वप्नों को क्यों देखे....
जिनसे हो गए दिल उदास,
कवि : अशोक कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर

शनिवार, 9 जून 2012

शीर्षक :- वर्षा

शीर्षक :- वर्षा 
वर्षा रानी वर्षा रानी....
जल्दी तुम से आओ न,
इस सूखे भू-मण्डल पर....
पानी तुम बरसाओ न,
फिर से हरियाली आ जाये....
मखमल सी घास लहराए,
फूलों से उपवन भर जाये....
वर्षा रानी वर्षा रानी,
ऐसा जादू कर दिखलाओ....
फिर से अपने साथ वर्षा लाओ,
अपनी वर्षा की फुहारों से....
भीषण गर्मी अब दूर भगाओ,
हमें अब ठंडी हवा दे जाओ....
वर्षा रानी वर्षा रानी,
जल्दी से तुम आओ न....
कवि : मुकेश कुमार 
कक्षा : 11
अपना घर 

शुक्रवार, 8 जून 2012

कविता :- हर पथ नामुमकिन नहीं होता

कविता :- हर पथ नामुमकिन नहीं होता 
हर पथ मुश्किल नहीं होता....
न ही आसान होता है,
जिन्दगी में अगर आगे बढ़ना है....
तो फिर मुश्किलों से लड़ना है,
मेहनत करना नामुमकिन नहीं होता....
हर पथ मुश्किल नहीं होता,
जो कोई भी मुश्किल से लड़ता है....
वही तो है,
जो आगे बढता है....
 कवि : चन्दन कुमार 
कक्षा : 7
अपना घर 

शीर्षक :- शिक्षा

शीर्षक :- शिक्षा 
वह शिक्षा किस कम की....
जिसमें कोई सम्मान नहीं,
वह शिक्षा किस कम की....
जिसमें परसेंटेज नहीं,
वह सोंच विचार किस काम की....
जिसमें हर इन्सान की बात नहीं,
शिक्षा अब वही शिक्षा है....
जिसमे नंबर हो शानदार,
करें तारीफ हजार बार....
लग जाये कार्ड में हजार चाँद,
चमके जब एक साथ....
फैले प्रकाश चारों ओर,
जिसमें पथ दिखे हजारों मील....
जिसमे कहीं भी चल सको,
बंद करके अपनी आखें....
चल सको खुद को लेकर,
बनो सबका सहारा....
न खुद बनो वैशाखी का सहारा,
रहो हर पल खुद के सहारे....
शिक्षा वही शिक्षा है,
जिसमें खुद की पहचान हो....
नाम : अशोक कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर  

गुरुवार, 7 जून 2012

कविता :- सिर्फ सोंचा करते है

कविता :- सिर्फ सोंचा करते है 
अकसर लोग दिन में सोंचा करते है.... 
और रात के अँधेरे में सोया करते है,
बाकी बचा हुआ सुबह,और शाम घूमने फिरने में....
गुजार दिया करते है,
इसी तरह जिन्दगी का एक सुनहरा....
दिन गुजर जाया करता है,
और हम जैसे लोग अपनी जिन्दगी को जीने....
के सिवाय दूसरों के लिए कुछ नहीं किया करते है,
सिर्फ दिन में सोंचा करते है....
और रात के अंधेरों में सोया करते है,
जिन्दगी क्या है ? जिन्दगी कैसी होती है ?....
अकसर इन बातों के बारे में सोंचा करते है,
और जिन्दगी क्या है ? जिन्दगी कैसी होती है ?....
तो उन तमाम सारे भट्टों पर और उन गाँवो में,
जाइये जहाँ सैकड़ों बड़ी-छोटी जिंदगियां....
अपनी जिन्दगी को जीने के लिए कम कर-करके,
अपनी जिन्दगी को जिन्दगी के लिए गुजार दिया करते हैं....
और हम सोंचा करते है कि जिन्दगी क्या है,
अकसर लोग दिन में सोंचा करते है.... 
और रात के अँधेरे में सोया करते है,
नाम : सागर कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर

बुधवार, 6 जून 2012

कविता :- जिन्दगी का राज

कविता :- जिन्दगी का राज 
जिन्दगी में हैं इतने सारे मुकाम....
कि आराम करना भी है हराम,
लक्ष्य तेरा है जो भूलना नहीं....
आगे बढ़ना तू रुकना नहीं,
पा लोगे अपनी मंजिल को....
मंजिल अब दूर नहीं,
मुश्किलें आयेंगी अनेकों....
आगे बढ़ना तुम डरना नहीं,
मंजिल लगे जब दिखने....
तब समझना पूरे होने लगे सपने,
सपने पालना तो बहुत आसान है....
उनको पूरा करने में निकल जाती है, सबकी जान,
जब चुन ही लिया है अपनी मंजिल....
तो उसे करना होगा तुम्हे हासिल,
जिन्दगी में मिले है गम ही गम....
आओ इन्हें सहकर आगे बढ़ जाएँ हम,
हमें अपनी जिन्दगी पर नाज....
कोई न जाने किसी की जिन्दगी का राज,
कवि : आशीष कुमार 
कक्षा : 10 
अपना घर 

मंगलवार, 5 जून 2012

कविता :- अँधेरा

कविता :- अँधेरा 
एक अँधेरे घर में....
एक दीपक का हुआ अविष्कार,
तभी आ एक उससे पत्थर टकराया....
प्रथ्वी ने एक जन्म सा पाया,
करोंडो वर्षों बाद हुआ....
इस संसार का अविष्कार,
आज कलयुग का मनुष्य....
प्रकति का कर रहा शिकार,
ऐसा ही अगर होता रहा....
तो नहीं रहेगी ये धरा,
नहीं रहेगा ये दीपक....
और छा जायेगा अँधेरा,
नाम : सोनू कुमार 
कक्षा : 11 
अपना घर  

सोमवार, 4 जून 2012

कविता :- नेता

कविता :- नेता 
भ्रष्ट है ये आज के नेता....
और भ्रष्ट है ये उनकी सरकार,
फैला रखी चारों ओर बर्बादी....
और ये जनता खड़ी लाचार,
खट्टे-मीठे ये वादे करके....
वो हमको खूब है लुभाते,
बिन सोंचे और बिन समझे....
हम भी वोट देने चले जाते,
आज की ओ युवा शक्ति....
तुम अब जाग जाओ,
भ्रष्टाचार को दूर भगाकर....
प्यारा सा एक देश बनाओ,
नाम : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर

शनिवार, 2 जून 2012

कविता :- मशीनी दुनिया

कविता :- मशीनी दुनिया
दुनिया आगे बढाती जा रही....
नई-नई तकनीकि बना रही,
दिमाग लगा कम्प्यूटर बना दिया....
और आसमान जहाज उड़ा दिया,
आज इस मशीनी दुनिया में....
इन्सान का नहीं अब काम रहा,
ऐसी ऐसी मशीन बन गई....
हर काम मशीन करती हो जहाँ,
कम्प्यूटर इन्टरनेट से तो अब....
दूर-दूर तक बाते हो जाती,
कैसे होता है ये सब....
बात ये समझ न आती,

नाम : धर्मेन्द्र कुमार
कक्षा : 9 
अपना घर

शुक्रवार, 1 जून 2012

कविता:-गौरैया

कविता:-गौरैया
गौरैया ओ चिड़िया रानी.... 
घरों में हमारे आती है,
गाना गाकर उछल कूदकर....
जानें कहाँ उड़ जाती है,
तुम्हारा अस्तित्व संकट में क्यों है....
हमें तुम्हें बचाना है, 
गौरैया की चहल-पहल....
को बचाना चाहिए, 
तुम छोटी हो कितनी प्यारी हो....
चुन-चुन गीत सुनती हो, 
गाँव की झोपड़ियाँ घोसला तुम बनती हो....
गौरैया ओ चिड़िया रानी, 
घरों में हमारे आती है....
हल्ला खूब मचाती  हो,
 
नाम : मुकेश कुमार 
कक्षा : 10
 अपना घर 

कविता :- आकाश

कविता :- आकाश
काश आज हमारा एक आकाश होता,केवल वह हमारे लिए ही आज होता....
काश हम उसकी उचाईयों को छू पाते,काश आज हम उस तक पहुँच पाते, 

आकाश हमारे लिए और हम,आकाश के लिए होते....
तो आज के कलयुग में,बोझ हम न ढ़ोते,
आज के इस समय में,नन्हे-नन्हे हाथों से....
अब बोझ उठाया नहीं जाता,अब इन छोटे-छोटे बच्चों से,
इतना बड़ा ईंट बनाया नहीं जाता,काश आज हमारे पास आकाश होता....
ये नन्हा सा हाथ उसे
छूने को आजाद होता,कुछ बादल यूँ हमारी उम्मीदों,
पर खरे उतरने लगे,चलते-चलते राहों में अब....
वे बरसने लगे,अब हममे से कुछ सितारे यूँ निकले कि,
अब ये इस तरह हंसकर,आकाश में चमकने लगे....
प्रकाश अब हम यूँ फैलाएं कि,हमारी रोशनी में वो भी आगे बढ़ने लगे,
अब हम सभी होकर खुश,आपस में भी गले लगने लगे....
काश आज हमारा एक
आकाश होता,केवल वह हमारे लिए ही आज होता,
काश आज हमारे पास आकाश होता,ये नन्हा सा हाथ उसे छूने को आजाद होता....

नाम : सोनू कुमार
कक्षा : 11
अपना घर