" चेहरें की हॅंसी "
चेहरें की हॅंसी |
रूठती ही जा रहीं हैं ,
आँसु और गम दोनों |
मिटटी हीं जा रहीं हैं ,
चेहरें पर उदासी बनी हैं |
न चेहरें पर मुस्कुराहट है ,
न आँसुओ पर कोई छाया |
न मन में कोई हिचकिचाहत ,
न गम पे कोई पैहरा |
न पैरों में कोई बंधन ,
ये दिन रुठती ही क्यों जा रहीं हैं ,
कवि : सनी कुमार , कक्षा : 10
अपना घर
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