शनिवार, 19 जून 2021

कविता : " चेहरें की हॅंसी "

" चेहरें की हॅंसी "

 चेहरें की हॅंसी | 

रूठती ही जा रहीं हैं ,

आँसु और गम दोनों | 

मिटटी हीं जा रहीं हैं ,

चेहरें पर उदासी बनी हैं | 

न चेहरें पर मुस्कुराहट है ,

 न आँसुओ पर कोई छाया |

न मन में कोई हिचकिचाहत ,

न गम पे कोई पैहरा | 

न पैरों में कोई बंधन ,

ये दिन रुठती ही क्यों जा रहीं हैं ,

कवि : सनी कुमार , कक्षा : 10 

अपना घर

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