"मुझे लग रही थी ,ठण्डी "
मुझे लग रही थी ,ठण्डी शाम को |
मैने इकट्ठा किया कुछ घास ,
सब मिलकर आग जलाए एक साथ |
ठण्डी से नहीं कर रहा था , हाथ पाँव काम,
मैने आस -पास से लकड़ी का किया इंतजाम |
आग पे बैठे -बैठे हो गया ,
शाम के आधी रात |
अभी भी मै क्यूँ बैठा हूँ आग के पास,
कोहरा गिर रहा था मेरे आस -पास |
सब मिलकर आग जलाए एक साथ ,
कवि : अमित कुमार , कक्षा :7
अपना घर
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