शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

कविता: बकरी खाती खीरा ककड़ी

बकरी खाती खीरा ककड़ी

एक थी प्यारी बकरी,
खाती हरदम खीरा ककड़ी...
जब दिन आया मंगल,
वो भाग के पहुँची जंगल...
जंगल में मिले दो भालू,
दोनों खा रहे थे कच्चे आलू...
बकरी को खिलाया कच्चा आलू,
खाकर बकरी बन गई चालू...
भालू ने सोचा बकरी को खा लूँ,
नरम मुलायम मांस मै पा लूँ...
बकरी निकली बहुत ही चालू,
भालू को पिलाया जम के दारू...
दारू पीकर भालू बोला खीरा-खीरा,
बकरी ने झटपट भालू को चीरा...
भालू ने मरते ही बोला जय हो,
भैया बकरी से अब रखो भय हो...
सब भालू अब खाना खीरा ककड़ी,
जैसे हरदम खाती थी वो बकरी..
एक थी प्यारी बकरी,
खाती हरदम खीरा ककड़ी...
लेखक, सागर कुमार, कक्षा , अपना घर

1 टिप्पणी:

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Vah bahut badhiya ..balgeet...aise hee likhate rahen.
Poonam