"संघर्ष "
दो पल की छांव है ,
और दो पल की धूप है |
यह संघर्ष की सफर में ,
अनेक रूप है कई शुकून की लम्हे नहीं |
बस हर पल डर है और है नमी ,
यह संघर्ष की सफर में |
रूठी है मुझसे यह जमी ,
हर पल ढूंढ़ता हूँ |
शुकून की जिंदगी ,
अब तो दुवा यही करता हूँ |
ना रहे कोई कमी ,
यह संघर्ष की सफर में |
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th
अपना घर
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