"सुबह की वह सुनहरी धुप "
सुबह की वह सुनहरी धुप ,
जो बिना बोले चमक आती है |
सही समय नहीं होने पर ,
आपने आप गयाब हो जाती है |
न लगती न चुभती है ,
मन के भीतर तक है |
सभी दिमाग के तार को ,
फिर से एक्टिव करजाती है |
ये सुनहरी धुप ,
जिसके अनेक है रूप |
लेकिन मन को मोह जाती है ,
सुबह की वह सुनहरी धुप |
कविता : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th , अपना घर
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