"सूरज की चंचल किरणे"
सूरज की चंचल किरणे,
टहक - टहक कर उठती है|
पेड़ो की बधियो से वो ,
धरती पर छन कर गिरती है |
सूरज की चंचल किरणे ,
टहक - टहक कर उठती है |
यहाँ - वहां वो अपने संग ,
नई उमंग किरणों को |
दुनिया में फैलाती है ,
सूरज की चंचल किरणे |
टहक - टहक कर उठती है ,
पेड़ो की बधियो से वो |
धरती पर छन कर गिरती है
कवि : सनी कुमार कक्षा : 10th, अपना घर
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