" बसंत की उमंगें है आँगन में फैली "
बसंत की उमंगें है आँगन में फैली ,
पत्ते ना हो -तो लगते है विषैली |
धीमे - धीमे सुनती है शाहरी ,
चाहे दिन हो या दोपहरी |
बसंत में हरे- भरे पत्ते है फैली ,
बसंत की मौसंम बुझती है पहेली |
गुन - गुन गाती है पहेली ,
समझ नही आती है पहेली |
उसने सबके साथ खेल -खेली ,
आओ बैठकर सुने है पहेली |
कवि : कामता कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना
Thank you very much . I felt glad to read your comment . i will try to do much better creative .
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