" मोती सी चमक "
मोती सी चमक तेरी,
घासों पर नजर आती है |
वह मखमली सी खुशबू ,
सिर्फ फूलों से महक आते हैं |
चाँद की रोशनी में भी,
तारे और सितारे नज़र आते हैं |
वह ओस की बूँद ,
जो सुबह घासों में फैली होती है |
मैं रोज़ टहलता हूँ सुबह,
कोहरा ही कोहरा नजर आता है |
इस हवाओं की झोकों से,
ओस की बूंदे फिसल जाती हैं |
मैं रोकना चाहता हूँ ओस को,
जो आँखों से टपक जाते हैं |
और जमीन पर गिर जाते हैं,
गिर क मिट्टी में यूँ मिल जाते हैं |
कवि : सुल्तान कुमार, कक्षा : 7th
अपना घर
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर।
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