" अब ठानी है "
कुछ करने की मैनें अब ठानी है
बहुत अरसो बाद अपनी बात मानी है
मन भटकता ,दिमाग नकारता था,
बिना सोचे -समझे कुछ भी पढ़ता था |
समय को अब ही गवानी है,
कुछ करने की मैंने अब ठानी है |
बहुत सुने प्रवचन और मोटिवेशन,
अब खुद ही बनाना होगा अपना मन |
कुछ कर दिखाना है इस ज़माने में,
अब कुछ करने की ठानी है |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " अब मैंने ठानी है " प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखा बहुत अच्छा लगता है | गणित में बहुत रूचि रखते हैं |
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