" गांव की मिट्टी "
रंग बदलें रूप बदलें,
बदला सारा बहार |
अपनों से दूर होकर,
जाना मैनें सारा संसार |
ये सब जानने के बाद,
मुझे लगे सब अनोखी |
पर मुझसे जो जुड़ा है,
वह है मेरे गांव की मिट्टी|
मिझे अभी भी याद है वो
बरसात के दिन |
मैं जब झूमा करता था,
अपनों के बिन यहाँ तेज़ हवाओं के साथ |
उड़ने वाली रंग - बिरंगें तितली होती थी,
और उस दीवाने मौसम में |
मेरे साथ सोंधी मिट्टीके खुशबू होती थी,
मैं थोड़ी देर रुक जाऊँ
इसलिए अपने दिल बेइंतिहां गुजारिश थी |
और वक्त भी चलता था,
इसलिए वहाँ खूब बारिश की |
लेकिन खुद समझाया,
और बताया कभी और मिलेंगें |
ये अपने ख़ुशी के,
शायद कभी और खिलेंगें |
इसलिए सोचा आज,
लिख दूँ एक चिठ्ठी |
की मेरा मन जीत लिया अपनी गांव की मिट्टी ||
कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
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