शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

कविता: आख़िर क्या......?

आख़िर क्या....

कुछ नही बोलता,
फालतू में चिल्लाता...
दूसरो को जगाता,
सबकी नींद भगाता...
फटी जेब सिलता,
सभी से यह मिलता...
हलवा पूड़ी खाता,
रात को अपने घर में सोता...
आख़िर क्या....?


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आप ही बता दो..हम तो समझ ही नहीं पा रहे हैं. :)

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

yah hai koshish ek bachpan kee.aashirvad.narayan narayan

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

यह काम तो आदित्य ही कर सकता है:)

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

Bhaiya Aditya main to nahee samajh paaya yah pahelee ap hee bata den na-------please---.
HemantKumar