मंगलवार, 31 अगस्त 2021

कविता :"यह मौसम है बहुत बेगाना "

"यह मौसम है बहुत बेगाना "

यह मौसम है बहुत बेगाना | 

जब चाहिए तब हो  जाता अनजाना ,

गर्मी में हाल है बेकार | 

सर्दी में लोग करते है आराम ,

बरसात का मौसम है प्यारा | 

यही होता है एक मात्र सहारा ,

मौसम है बहुत बेगाना | 

जब चाहिए तब  हो  जाता अनजाना ,

कवि : कुलदीप कुमार 

अपना घर

 

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच   "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत"  (चर्चा अंक- 4174)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

मन की वीणा ने कहा…

सुंदर सृजन।