"यह मौसम है बहुत बेगाना "
यह मौसम है बहुत बेगाना |
जब चाहिए तब हो जाता अनजाना ,
गर्मी में हाल है बेकार |
सर्दी में लोग करते है आराम ,
बरसात का मौसम है प्यारा |
यही होता है एक मात्र सहारा ,
मौसम है बहुत बेगाना |
जब चाहिए तब हो जाता अनजाना ,
कवि : कुलदीप कुमार
अपना घर
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत" (चर्चा अंक- 4174) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर सृजन।
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