गुरुवार, 8 जुलाई 2021

कविता: "कोई जगह ही था "

"कोई जगह ही था  "

जैसा भी था पर कोई जगह ही था |
नदी हो या फिर कोई नाला ही था ,
पर पानी से वह भरा ही था |
बाँस - बसेड़ियों और अन्य पेड़ों से था हरा हरा ,
अलग - अलग पक्षियों से भी था भरा |
पेड़ों पे और झाड़ियों में, था हलचल स कुछ हो रहा ,
 जब देख, तो कुछ जानवर था भाग रहा |
जैसा भी था पर कोई जगह ही था ,

कवि : पिंटू कुमार , कक्षा : 6TH 

अपना घर

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