" आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ "
भीड़ भाड़ की जिंदगी में
लोगों जीना दुस्वार हो गया,
वो क्या सोचते है क्या करते हैं
सब एक जैसा हो गया |
गरीबी ,अमीरी की तुलना में
बस यूँ ही लड़ते हैं,
यह मेरा है ,यह तेरा है
इस बात के लिए झगड़ते हैं |
दूसरे को ठोकर मार बोलते हैं
अब उन्नति की ओर बढ़ेगा,
क्या अपने कभी सोचा कि
बच्चों पर क्या असर पड़ेगा |
क्यों मजदूरों के अरमां को पत्थर मार
अपने घरों में सपने सजाते हैं,
उन्हीं हाथों से दीवारों की ईंटें बनी
यह बात क्या आप भूल जातें हैं |
अब लड़ाइयों को छोड़ना होगा,
एक दूजे से प्रेम से बोलना होगा |
एक नई दुनियाँ की ओर कदम बढ़ाएँ
आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ | |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक "आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ " प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है | प्रांजुल को गणित के सवाल और नई चीजों को सीखना बहुत अच्छा लगता है | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है |
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