" व्हाट्सएप्प "
जिंदगी बन गई है व्हाट्सअप,
हर लोग करते रहते गपसप |
घर बैठे रहते आराम से,
बेफिक्र और बेकाम से |
मम्मी जब काम बताती हैं,
हो जाएगा कहकर भूल जाते हैं |
हम बैठे अनजान दोस्तों को भेजते मैसेज,
कोई कुछ बोलता तो हम कहते ये है न्यू
खेलना कूदना भूल गए,
आराम की जिंदगी कबूल गए |
मोबाइल चलाने का बहाना ढूढ़ते हैं,
जब न मिले तो मुँह लटकाकर घूमते हैं
कमाल मोबाइल का जहाँ,
दुनियाँ ख़त्म हो रही है वहाँ |
कविता : देवराज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | देवराज ने यह कविता एक व्हाट्सअप पर लिखी है की कैसे आजकल लोग व्हाट्सअप के दीवाने बनते जा रहे हैं | देवराज को कवितायेँ पसंद है | उम्मीद है और भी अच्छी कवितायेँ लिखेंगें |
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