" गर्मी के दिन "
कड़कती हुई धुप में
छाँव भी काम न आए,
गर्मी में टपकता हुआ पसीना
बस टपकता ही जाए |
लोगों का कर दिया मुश्किल जीना,
क्या कहूं इस बहता पसीना |
जैसे लावा और आग जलती है,
वैसे ही गर्मी में जीवन फिसलती है |
गर्मी के आगे कुछ भी टिक न पाए,
इस भयंकर गर्मी में पंखे काम न आए |
फिर भी जीवन रुकता नहीं है,
मौसम का क्या ,आज है कल नहीं ||
कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 6th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता सुल्तान के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक " गर्मी के दिन " हैं | सुल्तान को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक अच्छी कवितायेँ लिखने की कोशिश करते हैं | उम्मीद है एक दिन अपनी कविताओं से सभी को प्रेरित करेंगें |
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