मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

कविता : इंसान जब थोड़ा बड़ा होता है

" इंसान जब थोड़ा बड़ा होता है "

न मिल पाए आराम करता है सिर्फ काम,
बचपन के खेल खिलौने को देता है आराम | 
जिसकी जिंदगी गुजर जाती है सिर्फ काम से,
वो दिन रात लगा रहता है बिन आराम के | 
जिस खिलौने से खूब प्यार से खेलता था,
उन्हीं खिलौने में दिनभर खोया रहता था | 
आज उन्हीं को पड़ रहा है बेचना,
उसका तो बस काम परिवार को चलाना है |
इंसान जब थोड़ा बड़ा हो जाता है | |
जिम्मेदारियों से घिर जाना उनको पूरा करना,
अपना कर्तव्य सिर्फ जिम्मेदारियों को पूरा करना समझना | 
डीजे बजते हुए भी न नाचना,
नाचने को लेकर मन में आशंका होना | 
अपने उस बचपन को खोता है,
इंसान जब थोड़ा सा बड़ा होता है |
सुबह घर से निकलना शाम को घर आना,
अपने अंदर के उदासी को भूलकर खुश रहना | 
नरक जिंदगी में भी डटे रहना,
बिना संकोच में लगा रहता है इंसान जब थोड़ा बड़ा होता है | | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | समीर एक बहुत ही अच्छे बालक है | हमेशा कुछ नया सिखने की ललक रखते हैं | कविता , कहानियां लिखना पसन्द करते हैं |
 

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