" धैर्यवान बगुला "
मैं बगुला के भाँति तालाब किनारे बैठा,
अब सब्र का फल छूटा जाए
भूख से बेचैनी और भी बढ़ती जाए |
मेरी वह भूख यूँ देख -देख भड़कती जाए,
सतर्कता के बाद भी शिकार नज़र न आए |
संघर्ष की सीमा अभी भी बनी है,
हर एक शिकार मेरे लिए अजनबी है |
घंटों बैठ तालाब को निहारूं,
चलते शिकार को आँखों में उतारूँ |
कहीं एक टांग तो कहीं गर्दन ऊँची,
कहीं शिकार तो कहीं नजरें नीचें |
कितना सब्र के बाद कुछ पाऊँ,
कुछ नहीं तो खाली हाँथ ही मलता जाऊँ |
कवि : राज कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता राज के द्वारा लिखी गई है जो की हमीरपुर के रहने वाले हैं | राज एक बहुत अच्छे कविकार है और अच्छी -अच्छी कवितायेँ लिखते हैं | राज एक समाज सेवक बनना चाहतें हैं |
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