" पहली किरण "
सुबह की वह पहली किरण,
तन मन को छू कर जाती है |
टूटे उम्मीदों के पिटारों को,
खुशियों से भर जाती है |
अपनी तीव्रता का बखान न कर,
औरों का उत्साह बढ़ाती है |
यूँ चमचमाती रोशनी से,
पूरे जगत में मोती बन बिखर जाती है |
पूरे दिन भर के थकान को,
यूँ बदल कर चली जाती है |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर
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