" प्रकति से प्यार "
इन हवाओं में कुछ तो बात है,
इन बहारों में कुछ बात तो है |
जी करता है इसमें मैं बस खोया रहूँ,
इनके रहते बस सोया ही रहूँ |
जी करता है इन फिजाओं में मैं खो जाऊँ,
या फिर इन बहारों में जिंदगी भर सो जाऊँ |
मुझे हक़ नहीं कि मैं इन्हें बाँध कर रखूँ,
मुझे हक़ नहीं है मैं कहीं प्रदूषण फैलाऊँ |
पर मुझे जिंदगी और प्रकति से प्यार है,
तो मैं प्रदूषण क्यों फैलाऊँ |
इनका उधर से इधर चलना मन को मोह लेता है,
इनके रहते हुए हर आदमी अपनी जिंदगी को ढो लेता है |
कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर ने इस कविता का शीर्षक " प्रकति से प्यार " दिया है जो कि एक अनोखी सी बात लगती है | समीर बहुत ही अच्छी कवितायेँ लिखते हैं |
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