" बदल कर देखें "
खुशियों का कभी दिन था,
चिड़ियों की चहचाहट होती थी |
हर इंसान के मन में इच्छा थी,
बड़े बड़े सिनेमाघर जाने की |
उन खुशियों में यूँ मोड़ आया,
बदली जिंदगी जिसे मैं समझ न पाया |
देखते -देखते सपने टूटने लगे,
इस जिंदगी में कोई अपना न लगे |
फिर क्यों बैठे हैं अपने हाथों को रखे,
शायद बदल जाए एक बार बदल कर देखे |
कवि : संजय कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता संजय के द्वारा लिखी गई है जो की झारखण्ड के रहने वाले हैं | संजय को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और बहुत सारी कवितायेँ लिख चुके हैं | संजय एक आर्मी बनना चाहते हैं |
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