"अनजान सफर"
एक अनजान सफर पर निकला हूँ मैं |
ना ही उसका अंत है ,
और ना ही उसका कोई शुरुआत |
बस ऐसे ही निकल पड़ा हूँ मैं ,
मैं तो ये भी नहीं जनता |
कि ये मुझे कहाँ ले जाएगी ,
और किस मोड़ पर छोड़ेगी |
इस सफर पर चलने के लिए ,
कई लोग मदद करेंगे |
पर मेरा कोई साथ नहीं देंगे ,
मुझे खुद ही अकेले चलना होगा|
और खुद ही कोई रास्ता निकालना होगा,
एक अनजान सफर पर निकला हूँ मैं |
कवि :नितीश कुमार ,कक्षा :12th
अपना घर
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