शुक्रवार, 26 मई 2023

कविता :"अंधकार "

"अंधकार "
 अंधकारों से मै ढका हुआ था | 
न इधर का ,न उधर का | 
न सड़क पर ,न खलियानो पर | 
दूर कंही शहर के चुराहों पर ,
बस यूँ ही रुका हुआ था | 
अंधकारों स मै ढका हुआ था ,
बस सांस थी ,तो आस थी | 
न रो पाया, न हंस पाया ,
बस दूर से मुस्कुराया | 
यूँ ही चेहरे पर मुस्कान टिका हुआ था ,
अंधकारों से मै ढका हुआ था | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :9th
अपना घर  

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