"मैं क्या कर सकता हूँ "
उन हवाओं को चीरकर |
चाँद -तारो को छीनकर ,
जमी पर ला सकता हूँ |
पहाड़ो को तोड़कर ,
पत्थरो को फोड़कर |
जाने क्या बना सकता हूँ ,
जमी को खोदकर |
आसमान को फोड़कर ,
जाने क्या ला सकता हूँ |
अपने सपने ना मुमकिन को,
मुमकिन बना सकता हूँ |
कवि :महेश कुमार ,कक्षा :9th
अपना घर
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