गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

कविता : मौसम है कितने प्यारे

" मौसम है कितने प्यारे "

बदलते मौसम के नज़ारे ,
लगते हैं कितने प्यारे |
कहीं धूप तो कहीं छाँव है,
इस मौसम में सब बेहाल है
खेतों में ही हरियाली है 
गांव में या खलियानों में,
खेतों या पहाड़ों में | 
ये नज़ारे आँखों को चुभते ही नहीं,
इनकी शिकायतें कभी करते नहीं | 
ये मौसम बिलकुल अनजान से लगते हैं,
कभी अकेले किसी से डरते नहीं | 
 बदलते मौसम के नज़ारे ,
लगते हैं कितने प्यारे | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 6th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता सुल्तान के द्वारा लिखी गई है  बिहार के रहने  हैं | सुल्तान को कवितायेँ लिखने  शौक है और साथ ही साथ चित्र बनाना भी | सुल्तान ने इस कविता का शीर्षक " मौसम है कितने प्यारे " हैं

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कविता : " एक कहानी "

 " एक कहानी "

इस कहानी की है बात बड़ी,
एक छोटे राज्य रानी बीमार पड़ी |
जिंदगी और मौत के साथ खड़ी,
यह कहानी की है बात बड़ी |
डॉक्टर ने उसको  दवा दिया,
विश्वास के साथ इलाज किया| 
लेकिन दवा रानी पर काम न किया
इससे राजा चिंता में पड़े,
आधी रात में छत पर खड़े |
सोच विचार कर रहे थे कुछ ऐसा,
जिससे रानी हो जाए पहले जैसा |
उसने दुबारा डॉक्टर को बुलाया,
रानी की सारी परेशानी बताया  |
फिर डॉक्टर ने दी दवाई,
रानी ने फिर दवाई खाई | 
दो -तीन दिन में हुआ सुधार,
अब नहीं होंगें दुबारा बीमार | 
रानी को देख राजा हुए प्रसन्न ,
इस ख़ुशी में बाटे सभी को अन्न | | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " एक कहानी " है विक्रम के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | कानपुर के अपना घर संस्था में रहकर अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं | विक्रम को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है |

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

कविता : राज पाठ

" राज पाठ "


जिंदगी से बढ़कर जिसको प्यारा होता है राज,
अपनों से बढ़कर जिसको प्यारा होता है राज |
जिसको प्यारी है सिर्फ उसकी कुर्सी,
जो राज पाठ के लिए कभी नहीं करता मटरगस्ती | 
जिसके इशारों पर नाचती है बस्ती
जो कुर्सी के लिए रहता हमेशा बेताब,
जो लोगों को फाँसी पर चढ़ा देता बेनकाब | 
जिसकी एक दहाड़ से डर जाते सारे राजा,
वही अपने देश का कहलाता राजा | 
जिसने जिंदगी से बढ़कर राज को जाना,
जिसकी आँखों के सपने में था सिर्फ राज को पाना | 
वही कहलाता है एक देश का राजा | | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

कविता : इंसान जब थोड़ा बड़ा होता है

" इंसान जब थोड़ा बड़ा होता है "

न मिल पाए आराम करता है सिर्फ काम,
बचपन के खेल खिलौने को देता है आराम | 
जिसकी जिंदगी गुजर जाती है सिर्फ काम से,
वो दिन रात लगा रहता है बिन आराम के | 
जिस खिलौने से खूब प्यार से खेलता था,
उन्हीं खिलौने में दिनभर खोया रहता था | 
आज उन्हीं को पड़ रहा है बेचना,
उसका तो बस काम परिवार को चलाना है |
इंसान जब थोड़ा बड़ा हो जाता है | |
जिम्मेदारियों से घिर जाना उनको पूरा करना,
अपना कर्तव्य सिर्फ जिम्मेदारियों को पूरा करना समझना | 
डीजे बजते हुए भी न नाचना,
नाचने को लेकर मन में आशंका होना | 
अपने उस बचपन को खोता है,
इंसान जब थोड़ा सा बड़ा होता है |
सुबह घर से निकलना शाम को घर आना,
अपने अंदर के उदासी को भूलकर खुश रहना | 
नरक जिंदगी में भी डटे रहना,
बिना संकोच में लगा रहता है इंसान जब थोड़ा बड़ा होता है | | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | समीर एक बहुत ही अच्छे बालक है | हमेशा कुछ नया सिखने की ललक रखते हैं | कविता , कहानियां लिखना पसन्द करते हैं |
 

कविता : गर्मी के दिन

" गर्मी के दिन "

कड़कती हुई धुप में
छाँव भी काम न आए,
गर्मी में टपकता हुआ पसीना
बस टपकता ही जाए |
लोगों का कर दिया मुश्किल जीना,
क्या कहूं इस बहता पसीना |
जैसे लावा और आग जलती है,
वैसे ही गर्मी में जीवन फिसलती है |
गर्मी के आगे कुछ भी टिक न पाए,
इस भयंकर गर्मी में पंखे काम न आए |
फिर भी जीवन रुकता नहीं है,
मौसम का क्या ,आज है कल नहीं || 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 6th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता सुल्तान के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक " गर्मी के दिन " हैं | सुल्तान को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक अच्छी कवितायेँ लिखने की कोशिश करते हैं | उम्मीद है एक दिन अपनी कविताओं से सभी को प्रेरित करेंगें |

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

कविता : बादलों को छूना है

" बादलों को छूना है "

रंगीन आसमां को देख
मन खुश हो जाता हैं,
बादलों की परछाईं
जो समेत रंग देता है |
देख बादलों की परछाई
चंचल से होती है,
रंगीन आसमान को देख
मन खुश हो जाता है |
बैठ आसमान को देख,
उनकी गहराइयों को छूता हूँ | 
उड़ते बादलों को पकड़ने,
की कोशिश बस करता हूँ |
बनते बदल मुझसे कहते हैं,
साथ चलोगे यह मुझसे पूछते हैं |
रंगीन आसमां को देख
मन खुश हो जाता हैं| |

कवि : सनी कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परीचय : यह कविता सनी के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | इस कविता का शीर्षक " बादलों को छूना है " है | इस कविता में सनी ने बादलों को छूने की इच्छा को व्यक्त की है जो की एक काल्पनिक है | सनी को खेलकूद में भागीदारी लेना बहुत पसन्द है | सनी एक पढ़ने के साथ एक अच्छे और नेक इंसान बनना चाहते हैं |

कविता : औरों के लिए भी जीना है

" औरों के लिए भी जीना है "

 समुद्र की लहरें गा रही हैं,
ठण्डी हवाएँ हमें जगा रहीं हैं |
सूरज की किरणें हमें सता रहीं हैं,
यह बात किसी और को बता रही है |
बिना इन्हें देखे रहा न जाए,
बिना इन्हें सुने कुछ कहा न जाए | 
चिड़ियाँ यूँ ही चहचहा रहीं हैं,
सभी एक ही राग में गा रहीं हैं | 
कैसे प्रकति अपने में ही समां रही है,
अपनी सौंदर्य को और फैला रही है | 
क्या हमें भी अपने में ही रहना हैं 
अपने लिए नहीं औरों के लिए भी जीना है | 

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " औरों के लिए भी जीना है " सार्थक के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | सार्थक ने यह कविता औरों को प्रेरित करने लिए लिखी है | वर्तमान के साथ अपने इतिहास को भी साथ लेकर चलना चाहिए | सार्थक एक आर्मी बनना चाहते हैं |


शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

कविता : बदल कर देखें

" वतन के खातिर चलना "

यूँ दर  -दर भटकना,
खाली पैर वतन के खातिर चलना | 
कितना कठिन लगने लगा ,
पैरों में छाले पड़ने लगे हैं | 
भूख से पेट कटने लगा,
इन कड़ी धूप से दिमाग फटने लगा |
आँसुओं की धाराएँ बहने लगी है,
जिंदगी भी हमसे कुछ कहने लगी है | 
सुबह से शाम तक दर -दर भटकना,
वतन के खातिर यूँ चलना | 
शायद उस मंजिल तक पहुँच जाएगें,
फिर अपने को देश के नौजवान  कह पाएंगें | 

कवि : सार्थक कुमार ,कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता सार्थक के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | सार्थक पढ़ने में बहुत होशियार है और दूसरों की मदद करना बहुत अच्छा लगता हैं | उम्मीद है सार्थक और भी अच्छी कवितायेँ लिख दूसरों को प्रेरित करेंगें |

कविता : बदल कर देखें

" बदल कर देखें "

खुशियों का कभी दिन था,
चिड़ियों की चहचाहट होती थी | 
हर इंसान के मन में इच्छा थी,
बड़े बड़े सिनेमाघर जाने की | 
उन खुशियों में यूँ मोड़ आया,
बदली जिंदगी जिसे मैं समझ न पाया | 
देखते -देखते सपने टूटने लगे,
इस जिंदगी में कोई अपना न लगे | 
फिर क्यों बैठे हैं अपने हाथों को रखे,
शायद बदल जाए एक बार बदल कर देखे | 

कवि : संजय कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 
कवि परिचय : यह कविता संजय के द्वारा लिखी गई है जो की झारखण्ड के रहने वाले हैं | संजय को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है  और बहुत सारी कवितायेँ लिख चुके हैं | संजय एक आर्मी बनना चाहते हैं |

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कविता : घर बैठे -बैठे हो गए परेशां

" घर बैठे -बैठे हो गए परेशां "

घर बैठे -बैठे हो गए परेशां,
क्योंकि बाहर है कोरोना मेहमान  |
कुछ दिन पहले दुकानों में बिकते थे सिगरेट,
उसी दुकानों के सड़कों पर खेलते थे क्रिकेट | 
आज हम नहीं जा पा रहे प्लेग्राउंड,
क्योंकि पूरे देश में लगा है लॉकडाउन | 
पुलिस गाड़ी रुकवा कर मार रहे है लाठी,
इस हरकत को देख भाग जाते बाकी | 
पूरे देश में मचा है हाहाकार,
भूख से तड़प रहे हो गए लाचार | 
दो वक्त की रोटी हो गई मुश्किल,
दुआ करते हैं रोटी हो जाए हाशिल | 
जब ख़त्म होगा कोरोना का प्रकोप,
खुश हो जाएगें खानाबदोश |

 कवि : पिंटू कुमार , कक्षा : 5th , अपना घर

कविता : स्कूल जल्द ही खुले

" स्कूल जल्द ही खुले "

आज कल सभी लोग टीवी देखते हैं,
टीवी के बाद नित खेलते हैं | 
मैं टीवी में निक देखना पसंद करता हूँ,
कार्टून देख मैं खूब हँसता हूँ | 
कभी मोटू -पतलू तो कभी शिवा,
कभी समोसे तो कभी मेवा | 
यूँ कार्टून देखकर दिन कटता है,
घर बैठे दिमाग फटता है | 
बिना स्कूल और दोस्तों के दिन फीका,
याद आते है मस्ती करने का तरीका |
पेंसिल के लिए लड़ना याद आता है,
ये मेरा इसमें तेरा क्या जाता है | 
बहुत दिन हो गए दोस्तों से मिले,
ऐ मेरे भगवान स्कूल जल्द ही खुले | 

कवि : गोविंदा कुमार , कक्षा : 4th , अपना घर

कवि परिचय  : यह कविता गोविंदा के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं। अभी अपना घर संस्था में रहकर कक्षा 4 में पढ़ते हैं और बहुत दिमाग लगाना अच्छा लगता है | कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है |
 

कविता : यह साल बहुत अजीब है

" यह साल बहुत अजीब है "

यह साल बहुत अजीब है,
मौज मस्ती कुछ भी नहीं नसीब है |
पहले NCR और CAA ने  फैलाया झमेला,
अब कोरोना ने भारत को पीछे धकेला |
स्टूडेंट्स ने सोचा था
यह साल हमारा है
हम अपने क्लास में टॉप करेंगें,
हालत देखकर लग रहा है |
उसी क्लास में दुबारा पढेंगें |
 ये साल बहुत ही अजीब है,
मौज मस्ती कुछ भी नहीं नसीब है| 

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता कामता के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | कामता एक जिज्ञासु बालक है और कुछ नया सिखने के लिए सदैव आगे रहते हैं | कक्षा 9 के विद्यार्थी कामता अच्छी कवितायेँ लिखते हैं |

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

कविता : कोरोना एक महामारी

" कोरोना एक महामारी "

लम्बी छुट्टी चल रही हमारी,
सब जगह फैला कोरोना बनकर महामारी | 
सुनने में बहुत सुनहरा लगाती प्यारी,
लेकिन बहुत खतरनाक है ये बीमारी | 
चलो लड़ने के लिए करें तैयारी,
लगाम लगा इसमें करें सवारी | 
कुछ दिन के लिए भूल जाओ दोस्ती यारी,
घर बैठे करो एग्जाम की तैयारी | 
जरा भी डरो मत इससे,
आगे तुम ही सुनाओगे इसके किस्से | 
हमारा ही विजय होगा,
कोरोना हमेशा के लिए सोएगा | 
लम्बी छुट्टी चल रही हमारी 
सब जगह फैला कोरोना बनकर महामारी | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | देवराज को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है और ढेरों कवितायेँ लिख चुके हैं | देवराज को डांस करना भी अच्छा लगता है |



कविता : कोरोना के खिलाफ जंग

" कोरोना के खिलाफ जंग "

यह जंग हमारा है,
कोरोना तुमने कितनों को मारा है | 
सब  बदला करेंगें हम चुकता,
जब हमें मिलेंगा रास्ता |
अब तू दुबारा न आएगा,
यह पल तुम्हें बहुत सताएगा | 
बस अब कर लिया राज तुमने,
नहीं छोड़ेंगें चाहे मर पड़े हम | 
तूने जितना दर्द दिया हमें,
हर एक चीज की लिस्ट बनाई है हमने | 
घर से बाहर ही नहीं जाएंगें,
तो कोरोना कैसे मुझे पाओगे | 

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

रविवार, 12 अप्रैल 2020

कविता :आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ

" आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ "

 भीड़ भाड़ की जिंदगी में
लोगों जीना दुस्वार हो गया,
वो क्या सोचते है क्या करते हैं
सब  एक जैसा हो गया |
गरीबी ,अमीरी की तुलना में
बस यूँ ही लड़ते हैं,
यह  मेरा है ,यह तेरा है
इस बात के लिए झगड़ते हैं |
दूसरे को ठोकर मार बोलते हैं
अब उन्नति  की ओर बढ़ेगा,
क्या अपने कभी सोचा कि
बच्चों पर क्या असर पड़ेगा |
क्यों मजदूरों के अरमां  को पत्थर मार
अपने घरों में सपने सजाते हैं,
उन्हीं  हाथों से दीवारों की ईंटें बनी
यह बात क्या आप भूल जातें हैं |
अब  लड़ाइयों को छोड़ना होगा,
एक दूजे से प्रेम से बोलना होगा |
एक नई दुनियाँ की ओर कदम बढ़ाएँ
आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ | |


कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th ,  अपना घर

कवि परिचय :  यह कविता जिसका शीर्षक "आओ मिलकर एक आशियाना बनाएँ " प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है | प्रांजुल को गणित के सवाल और नई चीजों को सीखना बहुत अच्छा लगता है | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है | 

  



कविता : " व्हाट्सएप्प "

 " व्हाट्सएप्प "

जिंदगी बन गई है व्हाट्सअप,
हर लोग करते रहते गपसप |
घर बैठे रहते आराम से,
बेफिक्र और बेकाम से |
मम्मी जब काम बताती हैं,
हो जाएगा कहकर भूल जाते हैं |
हम बैठे अनजान दोस्तों को भेजते मैसेज,
कोई कुछ बोलता तो हम कहते ये है न्यू
खेलना कूदना भूल गए,
आराम की जिंदगी कबूल गए |
 मोबाइल चलाने का बहाना ढूढ़ते हैं,
जब न मिले तो मुँह लटकाकर घूमते हैं
कमाल  मोबाइल का जहाँ,
दुनियाँ ख़त्म हो रही है वहाँ |

कविता : देवराज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | देवराज ने यह कविता एक व्हाट्सअप पर लिखी है की कैसे आजकल लोग व्हाट्सअप के दीवाने बनते जा रहे हैं | देवराज को कवितायेँ  पसंद है | उम्मीद है और भी अच्छी कवितायेँ लिखेंगें |


शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

कविता : पहली किरण

"  पहली किरण "
सुबह की वह पहली किरण,
तन मन को छू कर जाती है | 
टूटे उम्मीदों के पिटारों को,
खुशियों से भर जाती है | 
अपनी तीव्रता का बखान न कर,
औरों का उत्साह बढ़ाती है | 
यूँ चमचमाती रोशनी से,
पूरे जगत में मोती बन बिखर जाती है | 
पूरे दिन भर के थकान को,
यूँ बदल कर चली जाती है | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | पढ़लिखकर घर परिवार और समाज की सहायता करना चाहते हैं |

कविता : धैर्यवान बगुला

" धैर्यवान बगुला "

मैं बगुला के भाँति तालाब किनारे बैठा,
अब सब्र का फल छूटा जाए 
भूख से बेचैनी और भी बढ़ती जाए | 
मेरी वह भूख यूँ देख -देख भड़कती जाए,
सतर्कता के बाद भी शिकार नज़र न आए | 
संघर्ष की सीमा अभी भी बनी है,
हर एक शिकार मेरे लिए अजनबी है | 
घंटों बैठ तालाब को निहारूं,
चलते शिकार को आँखों में उतारूँ |
 कहीं एक टांग तो कहीं गर्दन ऊँची,
कहीं शिकार तो कहीं नजरें नीचें | 
कितना सब्र के बाद कुछ पाऊँ,
कुछ नहीं तो खाली हाँथ ही मलता जाऊँ | 

कवि : राज कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता राज के द्वारा लिखी गई है जो की हमीरपुर के रहने वाले हैं | राज एक बहुत अच्छे कविकार है और अच्छी -अच्छी कवितायेँ लिखते हैं | राज एक समाज सेवक बनना चाहतें हैं |

कविता : प्रकति से प्यार

" प्रकति से प्यार "

इन हवाओं में  कुछ तो बात है,
इन बहारों में कुछ बात तो है |
जी करता है इसमें मैं बस खोया रहूँ,
इनके रहते बस सोया ही रहूँ | 
जी करता है इन फिजाओं में मैं खो जाऊँ,
या फिर इन बहारों में जिंदगी भर सो जाऊँ |
मुझे हक़ नहीं कि मैं इन्हें बाँध कर रखूँ,
मुझे हक़ नहीं है मैं कहीं प्रदूषण फैलाऊँ | 
पर मुझे जिंदगी और प्रकति से प्यार है,
तो मैं प्रदूषण क्यों फैलाऊँ | 
इनका उधर से इधर चलना मन को मोह लेता है,
इनके रहते हुए हर आदमी अपनी जिंदगी को ढो लेता है | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर ने इस कविता का शीर्षक " प्रकति से प्यार " दिया है जो कि एक अनोखी सी बात लगती है | समीर बहुत ही अच्छी कवितायेँ लिखते हैं | 

 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

कविता : कोरोना एक महामारी

" कोरोना एक महामारी "

जिंदगी की बात है यारों,
अपने आप को कोरोना से संभालों | 
कोरोना का इंतजार करो उस वक्त तक ,
बीमारी ख़त्म न हो जाए जब तक | 
कोरोना ने उड़ा दिया होश यारों,
किसी में रोकने का जोश नहीं है यारों | 
अगर बचना है इस कोरोना से 
निकलों मत अपने प्यारे घरों से | 
अपने आप को कोरोना से संभालो,
जो बचाओ करना है कर डालो | 
नहीं किया तो पड़ेगा भारी,
सभी देश में फैली है ये महामारी | 
कर डालो सभी प्रयासों को,
खुशियों से अपने घरों को भर डालों | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 6th , अपना घर 
कवी परिचय : यह कविता सुल्तान के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | सुल्तान एक जिज्ञासु बालक है | पढ़ाई के प्रति बहुत ही गंभीर रहना पसंद करते हैं | उम्मीद है भविष्य में और भी अच्छी कवितायेँ लिखेंगें |

कविता : हरियाली

" हरियाली "

फैली है चारों तरफ हरियाली,
पत्तियों से लदी है हर एक डाली | 
नई कोपलें निकल रहीं हैं,
हर जगह मचल रहीं हैं | 
कहीं घास तो कहीं है पेड़,
कहीं फल है तो कहीं है बेर | 
अपने बल पर कल सुधारें 
प्रदूषण सारे नियंत्रण करे | 
नित हमें लगाना है पेड़,
करना है प्रदूषण को ढेर | 

कवि : मंगल कुमार , कक्षा : 4th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता मंगल के द्वारा लिखी गई है जो की मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं | मंगल को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और बहुत ही कवितायेँ लिखते हैं | मंगल को नई चीजें सीखना बहुत पसंद है और सदैव सिखने के लिए तत्पर्य रहते हैं |

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

कविता : पौष्टिक खाना

" पौष्टिक खाना "

दूध -भात जो नित खाता है,
वही स्वस्थ बन पाता है | 
जो पौष्टिक भोजन करता है,
वो कभी बीमार नहीं पड़ता है | 
दिन में ठीक से खाना खाना है,
अपने आप को स्वस्थ बनाना है | 
पानी सेहत के लिए ठीक है,
अगर आप इसके जितना नजदीक हैं | 
फल को भी खाना है,
अपने को भी स्वस्थ बनाना है | 
खाओ सदा पौष्टिक खाना,
रहो तंदुरस्त और जिओ ज़माना |

नाम : गोपाल कुमार , कक्षा : 3rd , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता गोपाल के द्वारा लिखी गई है | गोपाल ने यह अपनी पहली कविता का शीर्षक            " पैष्टिक खाना " दिया है | कविता में कैसा भोजन करना है उसके बारे में जिक्र किया है ताकि हम स्वस्थ रह सके | गोपाल एक बहित ही चंचल बालक है |

कविता : कोरोना

" कोरोना "

कोरोना में कुछ नहीं हुआ सुधार,
तब भी कोरोना से हो रहे हैं बीमार | 
कोरोना बाहर सबका कर रहा है इंतज़ार,
उसको बस मौका मिल जाए एक बार | 
हम लोग जाएगें तो होंगें बीमार,
इसीलिए घर में ही करना है आराम | 
कोरोना है बिलकुल खतरनाक,
बच कर रहना नहीं तो होंगे बीमार | 
डरना नहीं है हमें इस कोरोना से,
लड़ना है इससे बड़ी हिम्मत से | 
 कोरोना में कुछ नहीं हुआ सुधार,
तब भी कोरोना से हो रहे हैं बीमार | 

कवि : नवलेश कुमार , कक्षा : 6th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता नवलेश के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं और अपना घर संस्था में रहकर अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं | नवलेश को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है और पढ़ाई में  बहुत अच्छे हैं

कविता : कुछ कर दिखाना है

" कुछ कर दिखाना है "

जिंदगी में कुछ अनोखा करना है,
जलते मशाल से भी ऊँचा उठना है | 
नीले आसमान से बादलों को देखना है,
पहाड़ों में चढ़कर मुझे दिखाना है | 
जिंदगी में कुछ अनोखा करना है,
चमकते तारों को करीब से देखना है | 
अपनी जिन्दगी में नया करना है,
लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाना है | 
उस जिन्दगी को नया करना है,
जो सालों से बंजर थी 
प्रेम के बीज डाल , उन्हें उपजाऊ बनाना है | 

नाम : संजय कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता संजय के द्वारा लिखी गई है जो की झारखण्ड के रहने वाले हैं | संजय को कवितायेँ लिखना और उन्हें लोगों तक पहुँचाना बहुत अच्छा लगता है | संजय को मेहनती की तरह काम करा पसंद है और सारे कामों को बहुत ही लगन से करते हैं |