"मेरा गांव "
सुन्दर सुसील सा गांव मेरा |
जिस को मैंने पेड़ों से था घेरा
कोड़े को हटा हटा के किया था साफ |
आज भी देखते है सुन्दर सा ख्वाफ
कभी कभी रोया करता था मै अकेले |
सभी के साथ मैंने बहुत से मैच खेले
सुन्दर सुसील सा गांव मेरा |
जिस को मैंने पेड़ो से था घेरा
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :7th
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें