"गर्मी"
लगाए बैठे उम्मीद सभी |
बुझेगी तो प्यास कभी
धरती प्यासी तड़प रही |
धूप की गर्मी कड़क रही
पेड़ पौधों मुरझाने लगे |
हवाएं पास से जब जाने लगे
सभी देखते बादल को जाते|
काश दो बूंद इधर भी गिर जाते
टप -टप करते टपक ही जाते|
कवि :संतोष कुमार ,कक्षा :8th
अपना घर
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