शनिवार, 23 मई 2020

कविता : डब्बा हो गे बंद

" डब्बा हो गे बंद " 

अब हो चुका लिखते -लिखते बोर,
अब चाहता हूँ मचाना शोर | 
एक ही चीज़ बार -बार लिखना,
एक ही चीज़ बार - बार पढ़ना | 
सोच का डब्बा हो गया बंद,
अब करना है हमें दंग | 
नींद का डब्बा खुला है हर दम,
करता है हमें हर जगह तंग |
कोरोना से नहीं लगता अब डर,
लगता है फालतू बैठा हूँ घर के अंदर | 
जीना है जब इस दुनियाँ,
डर नहीं हमें किसी कोरोना से | 

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | कुलदीप को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं |

कोई टिप्पणी नहीं: