" डब्बा हो गे बंद "
अब हो चुका लिखते -लिखते बोर,
अब चाहता हूँ मचाना शोर |
एक ही चीज़ बार -बार लिखना,
एक ही चीज़ बार - बार पढ़ना |
सोच का डब्बा हो गया बंद,
अब करना है हमें दंग |
नींद का डब्बा खुला है हर दम,
करता है हमें हर जगह तंग |
कोरोना से नहीं लगता अब डर,
लगता है फालतू बैठा हूँ घर के अंदर |
जीना है जब इस दुनियाँ,
डर नहीं हमें किसी कोरोना से |
कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | कुलदीप को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं |
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