" एक दूजे के लिए मर्म हो "
मुझे वहाँ जाना है,
जहाँ कलियाँ बेझिझक खिलती है |
मुझे वहाँ जाना है,
जहाँ दो राहे एक साथ मिलती है |
उस डगर की तलाश में चलूँगा,
हर मोड़ में अपने पद रखूँगा |
तोड़ दूँगा उस बंधे हुए जंजीरों को,
खोल दूँगा बंधें हुए आशियाना को |
मुझे वहाँ जाना है,
जहाँ जाति धर्म न हो |
मुझे वहाँ जाना है,
जहाँ केवल एक दूजे के लिए मर्म हो |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " एक दूजे के लिए मर्म हो " प्रांजु के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है | विज्ञानं में बहुत रूचि रखते हैं |
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