सोमवार, 18 मई 2020

कविता : चींटी और दुकानदार

" चींटी और दुकानदार "

भरा हुआ था चीनी से दुकान,
नींद में खोया हुआ था पहलवान | 
एक चींटी आ पहुंची दुकान,
बोली लेने आई हूँ चीनी 
और भरना है अपना मकान | 
यूँ सुन मांगने लगा पैसे दुकानदार,
बोली मैं तो लेने आई हूँ उधार | 
इतने में इंकार किया चीटीं को,
चींटी लगीं अब रोने को | 
बदला लूँगी कहकर चली गई,
पलटन ले आई अपनी दोस्तों की | 
दुकानदार लगा था बस सोने में,
चींटी लगी थी चीनी ढोने में | 
अचानक नींद खुली दुकानदार की,
तब तक बहुत देर हो चुकी थी | 
ख़त्म हो गई सारी चीनी की इमारते,
दुकानदार रह गया हाथ मलते | 

कवि : पिन्टू कुमार , कक्षा : 5th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता पिन्टू के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | पिंटू को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और चित्र कला बनाना अच्छा लगता है | इस कविता का शीर्षक "  चींटी और दुकानदार " है | उम्मीद है पिंटू और भी कवितायेँ लिखेंगें | 

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