" चींटी और दुकानदार "
भरा हुआ था चीनी से दुकान,
नींद में खोया हुआ था पहलवान |
एक चींटी आ पहुंची दुकान,
बोली लेने आई हूँ चीनी
और भरना है अपना मकान |
यूँ सुन मांगने लगा पैसे दुकानदार,
बोली मैं तो लेने आई हूँ उधार |
इतने में इंकार किया चीटीं को,
चींटी लगीं अब रोने को |
बदला लूँगी कहकर चली गई,
पलटन ले आई अपनी दोस्तों की |
दुकानदार लगा था बस सोने में,
चींटी लगी थी चीनी ढोने में |
अचानक नींद खुली दुकानदार की,
तब तक बहुत देर हो चुकी थी |
ख़त्म हो गई सारी चीनी की इमारते,
दुकानदार रह गया हाथ मलते |
कवि : पिन्टू कुमार , कक्षा : 5th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता पिन्टू के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | पिंटू को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और चित्र कला बनाना अच्छा लगता है | इस कविता का शीर्षक " चींटी और दुकानदार " है | उम्मीद है पिंटू और भी कवितायेँ लिखेंगें |
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