" काश धरती पर भी होते तारे "
रात की चाँदनी अँधेरी में लटके तारे,
संसार की जगत से देखो ,लगते प्यारे |
सोच में मैं पड़ जाऊँ ये हैं कितने सारे
इसका जवाब देना मुश्किल है प्यारे |
चाँद की रोशनी , रोशनी देते तारे ,
यूँ ही आकाश में घूमते बनके बिचारे |
काली अंधियारी की शोभा बढ़ाते,
सुबह होते ही गायब हो जाते |
कितने सुन्दर लगते है तारे,
बैठ बिस्तर पर नजरें निहारे |
सोच में पड़ जाता हूँ,
काश धरती पर भी होते तारे |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक " काश धरती पर भी होते तारे " है | यह कविता प्रांजुल ने कल्पना कर तारों के बारे में लिखी है | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है
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