सोमवार, 25 मई 2020

कविता : जून की गर्मी

" जून की गर्मी "

जून की लहलहाती गर्मी,
थोड़ा सा भी नहीं है नरमी | 
प्यास लगता बाररम बार,
शरीर ऐसे हो गए गरम 
जैसे लगा हो बुखार | 
सभी परेशां घूम रहे हैं,
घर बैठे ऊब रहे हैं  |
अलग से गरम गरम हवाएँ चलती,
पसीना टपके ऐसा जैसे
 की कोई बर्फ पिघलती | 

कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | देवराज को creativity में बहुत रूचि है | देवराज को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है | डांस करना भी अच्छा लगता है |

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