" जून की गर्मी "
जून की लहलहाती गर्मी,
थोड़ा सा भी नहीं है नरमी |
प्यास लगता बाररम बार,
शरीर ऐसे हो गए गरम
जैसे लगा हो बुखार |
सभी परेशां घूम रहे हैं,
घर बैठे ऊब रहे हैं |
अलग से गरम गरम हवाएँ चलती,
पसीना टपके ऐसा जैसे
की कोई बर्फ पिघलती |
कवि : देवराज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | देवराज को creativity में बहुत रूचि है | देवराज को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है | डांस करना भी अच्छा लगता है |
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