" हवा चली ठंडी -ठंडी "
हवा चली जब ठंडी -ठंडी
मन को यूँ ही मोह गया,
इस गर्मी से राहत ये दे गया |
हवा चली जब ठंडी - ठंडी
दिन में गर्मी ने कर दिया बेहाल,
रात में भी चैन न आए फ़िलहाल |
बस हवा के भरोसे बैठे रहते,
गर्मी काटने के पल पल को गिनते |
चलती है जब ये ठंडी -ठंडी हवा,
ऐसा लगता है यह है एक दवा |
हवा चली जब ठंडी -ठंडी,
लगता है जग चुकी है मण्डी |
कवि : संजय कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
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