" मैं निकला हूँ अपने तालाश में "
मैं निकला हूँ अपने तालाश में |
कोई नजर नहीं आता आस -पास में ,
कहाँ खो बैठा उनको |
जो रहता था मेरे पास में ,
मैं निकला हूँ अपने तालाश में |
भूखे प्यासे घूमता रहता हूँ ,
खोजने की कोशिश करता हूँ |
मैं रहना चाहता था उसको पास में ,
मैं निकला हूँ अपने तालाश में |
कवि : कामता कुमार , कक्षा : 10th
अपना घर
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