"मन की चाह को कहाँ से शुरुआत करुँ "
कहाँ से शुरुआत करू |
आँगन आसमान लंबी -चौड़ी ,
सागर या वसुधरा |
अपनी मन की चाह को ,
कहाँ से शुरुआत करुँ |
बीत गया सालों -साल ,
मन की चाह को कहाँ से शुरुआत करुँ |
देखा था जो आँखों से अब देखनाचाहू न ,
बोला था जो मुँह से अब दोबारा कहना चाहू न |
गलत सुना हुआ कानो से ,
सुनना और सुनाना किसी को चाहू न |
अब दोबारा क्यों न सुनू ,
मन की माग कब और कैसे पूरी करुँ |
कवि : पिन्टू कुमार , कक्षा : 6th
अपना घर
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