शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

कविता : "गर्मी का मौसम हो गया सुरु "

"गर्मी का मौसम हो गया सुरु " 

गर्मी का मौसम हो गया सुरु | 

कही छाँव तो कही पंखा के नीचे ,

काटेंगे दिन अपना | 

पढ़ाई में तो मन नहीं लगेगा ,

क्योंकि सूरज निकलना हो गया सुरु | 

दिन भर इधर -उधर भटकते रहेंगे ,

कभी रूम में तो कभी लाइब्रेरी | 

सब इंतजार करते है उस समय का ,

जब खेलने का काम होता है सुरु | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर  

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

कविता : " नया कुछ करने का"

" नया कुछ करने का"

 अब जा के मन को राहत मिल रहा | 

फूलो के होटो पर एकनया मुस्कान खिला रहा है ,

चहचाती हुए चिड़िया भी | 

एक दूसरे से मिल रहा ,

गिलहरी की आवाज | 

मन को छू जा रहा ,

मन को न मिले | 

पर गिलहरी को राहत मिल पा रहा ,

ये फाल्गुन के मौसम में मन करता है | 

 कुछ नया करने का ,

आगे बढ़ने का और राह पर चलने का | 

ये फाल्गुन के मौसम में मन करता है ,

नया कुछ करने का | 

कवि : अजय कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर


मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

कविता : "गरजता है बरसता नहीं "

"गरजता है बरसता नहीं "

 गरजता है | 

बरसता नहीं ,

चक्कर घिन्नी -सा घूमता रहता है | 

माथे पर हर बार ,

जाने कहाँ से लेकर आया है | 

वो अपना रंग हर कोई दुसता है ,

आसमान में ठहर गए है | 

बादल अपनी मर्जी का मालिक है ,

गरजता है | 

बरसता नहीं,

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर  

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

कविता : "सब चाहते है उसका बेटा पढ़ लिख जाए "

"सब चाहते है उसका बेटा पढ़ लिख जाए "

सब चाहते है उसका बेटा पढ़ लिख जाए | 

पढ़लिखकर उँचा नाम कमाए ,

और अपने सोसाइटी में बदलाव लाए |

एक चोर भी यही चाहता है ,

कही उसका बेटा चोरी न सीख जाए | 

सब चाहते है,उसका बीटा पढ़लिख जाये ,

और संसार में एक | 

बड़ा नाम कमाए,

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर

शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

कविता : " मैं निकला हूँ अपने तालाश में "

" मैं निकला हूँ अपने तालाश  में "

 मैं निकला हूँ अपने तालाश  में |

कोई नजर नहीं आता आस -पास में ,

कहाँ खो बैठा उनको | 

जो रहता था मेरे पास में ,

मैं निकला हूँ अपने तालाश में |

भूखे प्यासे घूमता रहता हूँ ,

खोजने की कोशिश करता हूँ | 

मैं रहना चाहता था उसको पास में ,

मैं निकला हूँ अपने तालाश में | 

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर 

कविता : " धुआँ है कितना खराब "

धुआँ है कितना खराब "

 धुआँ है कितना खराब | 

पेड़ -पौधों को कर देता है खराब ,

धुआँ अब नहीं फैलाना है | 

सुद्ध ऑक्सीजन पाना है ,

हमें बिमार अब नहीं पड़ना है | 

अधिक से अधिक पेड़ लगाना है ,

धुआँ है कितना खराब |

पेड़ -पौधों को कर देता है खराब ,

कवि : गोपाल कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर

 

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

कविता : "मन की चाह को कहाँ से शुरुआत करुँ "

"मन की चाह को कहाँ से शुरुआत करुँ "

 कहाँ से शुरुआत करू | 

आँगन आसमान लंबी -चौड़ी ,

सागर या वसुधरा | 

अपनी मन की चाह को ,

कहाँ से शुरुआत करुँ |

बीत गया सालों -साल ,

मन की चाह को कहाँ से शुरुआत करुँ | 

देखा था जो आँखों से अब देखनाचाहू न ,

बोला था जो मुँह से अब दोबारा कहना चाहू न | 

गलत सुना हुआ कानो से ,

सुनना और सुनाना किसी को चाहू न | 

अब दोबारा क्यों न सुनू ,

मन की माग कब और कैसे पूरी करुँ | 

कवि : पिन्टू कुमार , कक्षा : 6th 

अपना घर 

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022

कविता : "माँ की याद आती है "

"माँ की याद आती है "

माँ आज मुझे तेरी बहुत याद आ रही है | 

तेरी वो लोरिया लगता है मुझे बुला रही है ,

कैसे होगी मेरी माँ ये बहुत सताता है | 

फोन पर बात करते वक्त रोना भी आ जाता है ,

वो मुझे अपने गोद में उठाती थी | 

रूठ जाऊ तो बार -बार मनाती थी ,

पता नहीं इतना सारा प्यार मेरे लिए कहाँ से आती थी | 

अपने काम से लौट के ,

मेरे लिए कुछ न तो कुछ जरूर लाती थी | 

जब रूठ जाऊ तो खूब प्यार जताती थी ,

माँ आज तेरी बहुत याद आ रही है | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12TH 

अपना घर

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

कविता : "जिन्दगी का सफऱ कहाँ खत्म होगा "

"जिन्दगी का सफऱ कहाँ खत्म होगा "

सागर के बहन में ये जिन्दगी का | 

इस जिन्दगी का कोई ,

तो किनारा होगा | 

मेरी  इस छोटी जिन्दगी में ,

मेरा कोई तो सहारा होगा | 

मैं राह के लक्ष्य के खतीर ,

मुझे उठाने वाला कोई होगा | 

मुझे उस किनारे का ही तो ,

मुझे है इन्तजार है | 

सागर के बहाव में ये जिंदगी का ,

इस जिंदगी का कोई | 

तो किनारा होगा ,

कवि : संजय कुमार , कक्षा : 11TH 

अपना घर 

 

शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

कविता : "जिन लोगो ने जन्म लिया था"

"जिन लोगो ने जन्म लिया था"

 भारत माता की गोद में | 

जिन लोगो ने जन्म लिया था ,

अपने लहू के हर कतरे से | 

भारत को आज़ाद कराया था ,

सीने में गोली खा कर भी | 

अग्रेज़ को मारा करता था ,

भारत माता की गोद में | 

वीरों ने जन्म लिया था ,

आज भी उन लोगो का नाम लिया करते है | 

जिन लोगों ने जन्म लिया था ,

कवि : रोहित कुमार , कक्षा : 4th 

अपना घर 

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

कविता : "अपने मंजिल को पाने के लिए "

"अपने मंजिल को पाने के लिए "

शाम सूरज को ढलना सिखाती है | 

शमा परवाने को जलना सिखाती है ,

गिरने वालों को होती है तकलीफ | 

पर ठोकर ही इंसान को ,

आगे का रास्ता दिखाती है |  

हर तकलीफ से जूझती है ,

अपने मंजिल को पाने के लिए | 

हर गलतियों को माफ करती है,

कवि : राहुल कुमार , कक्षा : 8th 

अपना घर 

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

कविता : "उन बीते दिनों को याद करता हूँ "

"उन बीते दिनों को याद करता हूँ "

आज मैं याद कर रहा हूँ | 

उन बीते दिनों को ,

जब हमें चलना तक नहीं आता था | 

याद करता हूँ  ,

उन लम्हें को |

जो अपने गाँव में बिताया है ,

याद करता हूँ  |

उन दोस्तों को ,

जो मेरे साथ खेला करते थे | 

लेकिन आज मैं देखता हूँ ,

उन सब को | 

तो वो बात नहीं रही उन सब में ,

जो बचपन में हुआ करता था | 

कवि : संतोष कुमार , कक्षा : 6th 

अपना घर 

 

बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

कविता : "जब -जब मुझको कुछ याद न आता "

"जब -जब मुझको कुछ याद न आता "

जब -जब मुझको कुछ याद न आता | 

 तो तेरी याद आती है ,

मेरी नजरें ढूढे तुझे | 

क्या तू मेरे पास बैठी है ,

जब भी मैं कुछ गलती करता | 

मुझको माफ़ तू करती है ,

लेकिन क्या है खाश तुझमे | 

जो तू मेरी गलती सहती है ,

जब भी मै फोन करता | 

मैं कैसा हूँ ,खाना खाया ,न खाया ,

पहले पूछती हूँ | 

मेरी माँ तू ही तो है ,

जो मुझसे प्यार करती है | 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर 


मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

कविता : "कल -कल करते है सब "

"कल -कल करते है सब "

कल -कल करते है सब | 

फस गए है हम अब ,

हर काम में आ जाता है कल | 

पर कब आता है ये कल ,

काम से बचने का अच्छा तरिका | 

सबका कल इसी कल पर टिका ,

हर चीज में होता है कल | 

जीवन बिता पर ख़त्म न हुआ ये कल ,

किसने ये शब्द बनाया | 

सारी दुनियाँ को इसने है सताया ,

कल -कल करते है सब | 

कवि : कुल्दीप कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर

 

सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

कविता : " ये कोरोना कब जाएगा "

ये कोरोना कब जाएगा "

 ये कोरोना कब जाएगा | 

एक साल जाता है ,

और दो साल के लिए आता है | 

पूरे स्कूल भी हो गए है बंद ,

ऑनलाइन में नहीं लगता है मन | 

सब का पढ़ाई हो गया है भंग,

 कोरोना कब होगा कम | 

ये कोरोना कब जाएगा ,

कवि : नवलेश कुमार , कक्षा : 7th 

 अपना घर


 

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

कविता : "मैं असफलता से जूझ रहा था "

"मैं असफलता से जूझ रहा था "

मै बैठकर कुछ सोच रहा था | 

 मंजिल की राह में कितना जूस रहा हूँ ,

छोटी - छोटी असफलता से जीवन में | 

कितना मुसीबतों से लड़ना पड़ रहा है ,

 कभी उदास होकर , रूम में रोता रहता हूँ | 

तो कभी खुद को मोटीवेट करता हूँ ,

खुद पर भरोसा रखकर मैं | 

और कड़ी मेहनत मैं लग जाता हूँ ,

हर एक चीज़ में ख़ुशी को तलासे करता हूँ | 

काश वो एक दिन तो आयेगा ,

जब असफलता भी मंजिल को कदम चूमेंगी | 

मैं बैठकर कुछ सोच रहा था,

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर


बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

कविता : "ये भारत का हर एक लाल कहता है "

"ये भारत का हर एक लाल कहता है "

ये भारत का हर एक लाल कहता है | 

 कि उनके दिल में हमेशा ,

भारत का नाम रहता है | 

भारत माता के लाल बनकर ,

वो हरदम आगे बढ़ते जाते है | 

और जब उनसे कोई कुछ पूछता है ,

तो वो खुद को हिन्दुस्तानी बताते है | 

आओ मेरे भारत के भाई एव बहनों ,

हम सब एक साथ भारत माता के नारे लगाते है | 

जिसके लिए भगत ,सुभाष ने प्राण गवाँए थे ,

ये भारत का हर एक लाल कहता है | 

कवि : महेश कुमार , कक्षा : 7th 

अपना घर