बुधवार, 30 दिसंबर 2020

कविता:- क्योंकि बड़े हो गए हम

"क्योंकि बड़े हो गए हम" 
हम कब बड़े हो गए। 
ये बात पता ही नहीं चला।।
ये समय कितना जल्दी गुजर गए। 
कि ये पता ही नहीं चला।।
 हमारे बचपन हमारी यादें। 
सब गुजर गए है।। 
बस रह गयी तो सिर्फ यादें।
अब यादें बनाते हैं हम।। 
क्योंकि अब बड़े हो गए हम।
बचपन की गलतिओं को।।
एक बार माफ़ कर दिया जाता था।
अब गलती की कोई माफ़ी नहीं।।
क्योंकि अब बड़े हो गए हम। 
 बचपन में खिलौने के लिए रोना।।
किसी अच्छे जगह पर जाने की जिद्द करना।
अब वो जिक्र किससे करू।।
 क्योंकि बड़े हो गए हम।
बचपन में माता-पिता से रूठकर।।
अलग बैठा जाना।
अब मै किससे रुठुंगा।।
क्योंकि अब बड़े हो गए हम। 
 कविः- नितीश कुमार, कक्षा -10th ,अपना घर, कानपुर, 
कवि परीचय : शांत स्वभाव के नितीश कुमार बिहार के नवादा  जिले से अपना घर में पढ़ाई के लिए आये  हैं। इन्हें कविता लिखना पसंद है।

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