"चला जाऊँ छोड़ के ये जहाँ"
चला जाऊँ छोड़ के ये जहाँ।
क्युकि प्रदूषण ही है यहाँ ।।
मनुष्य भी हो गया है पागल।
खाने को नहीं है घर में चावल।।
कचरा से भरा ये संसार।
लोगो की मौत हो रही भरमार ।।
तरह तरह के बीमारी ये लाते।
बच्चो को बीमार कर जाते ।।
ना बचेगा हम में से कोई।
तब भगवन भी रोई।।
चला जाऊँ छोड़ के ये जहाँ।
कविः- कुलदीप कुमार, कक्षा -9th, अपना घर, कानपुर,
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