"मै यह नहीं कह सकता कि"
मै यह नहीं कह सकता कि।
यह धरती एक बंजर है।।
इस देश की धरती में।
जोश और लहू का समुन्दर है।।
वीर सिपाहियों ने यूहीं।
सितारे हासिल न किये है।।
ये वो सितारे है जो दिन रात।
अपना कीमती वक्त शरहद पर दिए है।।
घर परिवार और त्यौहार छोड़कर।
देश के बॉर्डर से रिश्ता जोड़ लिया।।
दुश्मन इस जमी पर न आये।
इन्हीं लफ्जों को सलाम देकर दम तोड़ दिया।।
मै शरहद पर तैनात रहता हूँ।
ताकि कोई दुश्मन आ न सके।।
मै एक रोटी ही खाता हूँ।
ताकि मेरा देश चैन से खा सके ।।
मै तो यूही शहीद होकर।
इस जग से चला जाऊंगा।।
अगर भगवान से दुआ माँगी।
तो इस देश की शरहद पर फिर लौट आऊंगा।।
कविः-प्रांजुल कुमार, कक्षा - 11th, अपना घर, कानपुर,
कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और
कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं। प्रांजुल
को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है। प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते
हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं।
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