"क्या हम खुलकर जी पाएंगे"
क्या हम खुली हवाओं में साँस ले पाएंगे।
क्या इन खुली वादियों में जी पाएंगे।।
या फिर ऐसे ही भटकते रहा जायेंगे।
क्या हम खुलकर जी पाएंगे।।
क्या हम हाल ये दिल।
किसी को सुना पाएंगे।।
या फिर ये बाते मेरे साथ ही।
दफान हो जाएँगे।।
क्या हम परिवार को खुश कर पाएंगे।
या फिर उन्हें ऐसे ही छोड़ जायेंगे।।
क्या हम कभी कामयाब हो पाएंगे।
क्या हम खुलकर जी पाएंगे।।
कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा - 6th , अपना घर, कानपुर
कवि परिचय : यह कविता सुल्तान के द्वारा लिखी गई है। जो की बिहार के रहने वाले हैं। सुल्तान कवितायेँ बहुत अच्छी लिखतेहैं। सुल्तान पढ़ाई के प्रति बहुत ही गंभीर रहते हैं।
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