शुक्रवार, 15 मई 2020

कविता : काले - काले बादल

" काले - काले  बादल "

काले - काले बादल छाए,
बाद में खूब बूँदें बरसाए| 
बच्चों ने भी बहुत मौज उड़ाए,
लेकिन परिजन खूब घबराए | 
काले - काले बादल छाए,
मोर , मेढ़क खूब शोर मचाए | 
हरियाली चारो तरफ बेझिझक छाए 
पेड़ पौधों में नए पत्ते निकल आए | 
गर्मी को कर दिया बाय - बाय ,
 काले - काले बादल छाए | |

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता जिसका शीर्षक " काले काले बादल " कामता के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | कामता को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है | कवितायेँ के शिक्षक छोटे होते हैं पर मेसेज बड़े होते हैं | कामता को कुछ नया सीखना अच्छा लगता है |

1 टिप्पणी:

विश्वमोहन ने कहा…

वाह! बहुत सुंदर।