मंगलवार, 9 मार्च 2021

कविता:- पवन

"पवन"
लहर-लहर हर दोपहर।
चलती हैं तू कुछ ऐसे।।
जंगल में मृग मोहिनी।
 चलती हो जैसे।।
कभी पसर-पसर कर।
तो कभी पतली डगर पर।।
चलती हो मटक-मटक कर।
झीलों में लहर उठती हो जैसे।।
कभी मंध-मंध।
तो कभी मन मोहकर चलती है।।
तो कभी फल पत्तियों को। 
झकझोर कर चलती है।।
चलने की आवाज आती है सर-सर।
ठंडक पहुँचाती है सभी को हर पल।।
कभी धीरे और आराम से चलती है।
कभी हमरे बालों को सहलाकर चलती है।।
पर चलती है ऐसे एक मुसाफिर हो जैसे। 
  कविः -देवराज कुमार, कक्षा -10th , अपना घर , कानपुर ,
 

कवि परिचय : यह हैं देवराज जो की बिहार के रहने वाले हैं। और अपना घर में रहकर  ये पढ़ाई कर रहे हैं।  देवराज पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं। | देवराज डांस बहुत अच्छा कर लेते हैं। और साथ ही साथ  अच्छी कवितायेँ भी लिख लेते हैं।
 
 

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