" बदला नहीं बचपन "
बदल रही है वो सुनशान सी गालियाँ ,
बदल रही है वो पेड़ों की कलियाँ |
बदल रहा है अब वो अवतार ,
बदल रहा है अब घर और द्वार |
बदला नहीं है बस वो मुस्कुराहटें,
बचपन की मीठी - मीठी फुसफुसाहटें |
बदल चुकी है चप्पल के नंबर,
बदल चुका है वस्त्र और अम्बर |
बदल गया है गलों का वो काजल,
बदल गया है माथे का वो चन्दन |
बदला नहीं तो वो मन का दुलार,
बचपन से अभी तक का ढेरों प्यार |
बदल रही है हर साल वो किताबें,
बदल रही है वो धीरे चलती कदमें |
बदल रहे है दोस्त और साथी,
बदल रहे है पेन और कॉपी |
बदला नहीं वो बस जुनूनी पढाई,
भूला नहीं वो बचपन की लड़ाई |
कवि ; प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर
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