" ये दसमी में क्या खाश है "
ये दसमी में क्या है खाश ,
किस चीज की लगये बैठे है आश |
खेलने जाओ तो दसमी सुनने को मिलता ,
खाना खाने जाओ तो दसमी सुनने को मिलता |
ना चैन से सोने को मिलता ,
ना ही कही आराम से बैठने को |
लगता है जैसे हिमालय का दीवार खड़ा हो ,
जिसे तोडना बहुत जरूरी हो |
सिर से लेकर आसमा तक ,
हर जगह दसमी की चर्चा खड़ी हो |
मनो कुछ पालो खुशिया छिन गई ,
जिंदगी एक किताबी कीड़ा बन गया |
ये दसमी में क्या खाश है ,
किस चीज की लगये बैठे है आश |
कवि : सार्थक कुमार ,कक्षा : 10th , अपना घर
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