" जिंदगी की ये मोड़ कहाँ आ गई "
जिंदगी की ये मोड़ कहाँ आ गई ,
दसवीं से आगे जाने में बीत गई |
क्या पढू क्या न पढू तय करने मे समय बीत गया ,
बाकी सभी लोगो का टेंथ एलेन्थ और ट्वेल्व्थ आ गया |
और दसमी पड़ते -पड़ते बोर हो गया ,
पढू तो सब याद रहे मौज मस्ती में भूल जाऊ |
अपना दुख किसी को न कह पाऊ ,
पेपर हाथ में लू तो सब भूल जाऊ |
पर नंबर न जाने कहाँ खो जाए ,
अब तो बोर्ड की घडी आ गई |
और कोरोना बढ़ने की खबर आ गई ,
कवि : समीर कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
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