"किसने बनाई ये बिगड़ी हुई संसार"
किसने बनाई ये बिगड़ी हुई संसार।
जहाँ अमीर प्रजातियाँ बनी हुए हैं खूंखार।।
हर पद का मजा लेते हैं ये भरमार।
किसने बनाई है ये बिगड़ी हुई संसार।।
लूटपाट भ्रष्टाचार फैलाने में आगे रहती हैं।
गरीबों के उम्मीदों पर करते हैं प्रहार।।
कभी कभी मैं सोचाता हूँ।
किसने बनाई ये बिगड़ी ये संसार।।
बराबरी का संसार बनाने में डरते है।
क्योंकि इनको करना है गरीबों पर राज।।
किसने बनाई ये बिगड़ी हुई संसार।
कविः - विक्रम कुमार ,कक्षा -10th ,अपना घर, कानपुर,
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