"मै अपने रास्तों पर चल सकता हूँ"
मै अपने रास्तों पर चल सकता हूँ।
हर मौसम के जैसा ढल सकता हूँ ।।
हाथों की लकीरो पर नहीं।
अब मै खुद पर भरोसा कर सकता हूँ ।।
कभी जो उचाईयों को देखकर डरा था।
पर अब चढ़ सकता हूँ ।।
कभी जो मुसीबत को देखकर डरा था।
पर अब लड़ सकता हूँ।।
मै उड़ते -उड़ते गिरु तो कोई गम नहीं।
पर मै आगे बढ़ सकता हूँ ।।
भले ही मेरा कोई ठिकाना ना हो।
पर कही भी आसियाना बना कर रह सकता हूँ ।।
मै एक मुसाफिर हूँ मुझे चलना पड़ेगा।
इन काटो भरे रहो पर ।।
मै अपने रास्तों चल सकता हूँ।
कविः -देवराज कुमार, कक्षा -10th , अपना घर , कानपुर ,
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर
sushil kumar ji dhanyvad
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