"सोचता हूँ कि मै बड़ा गया हूँ"
सोचता हूँ कि मै बड़ा हो गया हूँ।
कहाँ गिरता था अब खड़ा हो गया हूँ।।
अपने कामों को खुद करने लगा हूँ।
जो होता है उसे परखने लगा हूँ।।
लगता है कि मै बड़ा हो गया हूँ।
अब अपने और अपनो के बारे में सोचने लगा हूँ।।
बेकार दौर का भी लुफ्त उठाने लगा हूँ।
अपने में खुद को महसूस करने लगा हूँ।।
लगता है मै बड़ा हो रहा हूँ।
कविः- प्रांजुल कुमार, कक्षा -11th, अपना घर, कानपुर,
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना।
सुन्दर
dHANYAVAD SIR AA LOGO KO
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